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हि॒र॒ण्य॒ग॒र्भः सम॑वर्त्त॒ताग्रे॑ भू॒तस्य॑ जा॒तः पति॒रेक॑ऽआसीत्। स दा॑धार पृथि॒वीं द्यामु॒तेमां कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥१० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

हि॒र॒ण्य॒ग॒र्भ इति॑ हिरण्यऽग॒र्भः। सम्। अ॒व॒र्त्त॒त॒। अग्रे॑। भू॒तस्य॑। जा॒तः। पतिः॑। एकः॑। आ॒सी॒त्। सः। दा॒धा॒र॒। पृ॒थि॒वीम्। द्याम्। उ॒त। इ॒माम्। कस्मै॑। दे॒वाय॑। ह॒विषा॑। वि॒धे॒म॒ ॥१० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:10


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब परमात्मा कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग जो (हिरण्यगर्भः) सूर्यादि तेजवाले पदार्थ जिसके भीतर हैं, वह परमात्मा (जातः) प्रादुर्भूत और (भूतस्य) उत्पन्न हुए जगत् का (एकः) असहाय एक (अग्रे) भूमि आदि सृष्टि से पहिले भी (पतिः) पालन करने हारा (आसीत्) है और सब का प्रकाश करनेवाला (अवर्त्तत) वर्त्तमान हुआ (सः) वह (पृथिवीम्) अपनी आकर्षण शक्ति से पृथिवी (उत) और (द्याम्) प्रकाश को (सम् दाधार) अच्छे प्रकार धारण करता है तथा जो (इमाम्) इस सृष्टि को बनाता हुआ अर्थात् जिसने सृष्टि की उस (कस्मै) सुख करने हारे (देवाय) प्रकाशमान परमात्मा के लिये (हविषा) होम करने योग्य पदार्थ से (विधेम) सेवन का विधान करें, वैसे तुम लोग भी सेवन का विधान करो ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जिस परमात्मा ने अपने सामर्थ्य से सूर्य आदि समस्त जगत् को बनाया और धारण किया है, उसी की उपासना किया करो ॥१० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ परमात्मा कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

अन्वय:

(हिरण्यगर्भः) हिरण्यानि सूर्यादितेजांसि गर्भे यस्य स परमात्मा (सम्) (अवर्त्तत) वर्त्तमान आसीत् (अग्रे) भूम्यादिसृष्टेः प्राक् (भूतस्य) उत्पन्नस्य (जातः) प्रादूर्भूतस्य। अत्र षष्ठ्यर्थे प्रथमा। (पतिः) पालकः (एकः) असहायः (आसीत्) अस्ति (सः) (दाधार) धरति (पृथिवीम्) आकर्षणेन भूमिम् (द्याम्) प्रकाशम् (उत) अपि (इमाम्) सृष्टिम् (कस्मै) सुखकारकाय (देवाय) द्योतमानाय (हविषा) होतव्येन पदार्थेन (विधेम) परिचरेम ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयं यो हिरण्यगर्भो जातो जातस्य भूतस्यैकोऽग्रे पतिरासीत् सर्वप्रकाशेऽवर्त्तत स पृथिवीमुत द्यां संदाधार। य इमां सृष्टिं कृतवाँस्तस्मै कस्मै देवाय परमेश्वराय हविषा विधेम तथा यूयमपि विधत्त ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! येन परमेश्वरेण सूर्यादि सर्वं जगन्निर्मितं स्वसामर्थ्येन धृतं च तस्यैवोपासनां कुरुत ॥१० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! ज्या परमेश्वराने आपल्या सामर्थ्याने सूर्य इत्यादी संपूर्ण जगाला उत्पन्न केलेले आहे व धारण केलेले आहे त्याचीच उपासना करा.