बार पढ़ा गया
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्य (प्रजापतये) प्रजा पालने हारे राजा के लिये (पुरुषान्) पुरुषों (हस्तिनः) और हाथियों (वाचे) वाणी के लिये (प्लुषीन्) प्लुषि नाम के जीवों (चक्षुषे) नेत्र के लिये (मशकान्) मशाओं और (श्रोत्राय) कान के लिये (भृङ्गाः) भौंरों को (आ, लभते) प्राप्त होता है, वह बली और पुष्ट इन्द्रियोंवाला होता है ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - जो प्रजा की रक्षा के लिये चतुरङ्गिणी अर्थात् चारों दिशाओं को रोकनेवाली सेना और जितेन्द्रियता का अच्छे प्रकार आचरण करते हैं, वे धनवान् और कान्तिमान् होते हैं ॥२९ ॥
बार पढ़ा गया
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(प्रजापतये) प्रजास्वामिने (पुरुषान्) (हस्तिनः) कुञ्जरान् (आ, लभते) (वाचे) (प्लुषीन्) जन्तुविशेषान् (चक्षुषे) (मशकान्) (श्रोत्राय) (भृङ्गाः) ॥२९ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - यो मनुष्यः प्रजापतये पुरुषान् हस्तिनो वाचे प्लुषींश्चक्षुषे मशकाञ्छ्रोत्राय भृङ्गा आलभते, स बलिष्ठो दृढेन्द्रियो जायते ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - ये प्रजारक्षणाय चतुरङ्गिणीं सेनां जितेन्द्रियतां च समाचरन्ति, ते श्रीमन्तो भवन्ति ॥२९ ॥
बार पढ़ा गया
मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे प्रजेच्या रक्षणासाठी चारही दिशांना सुसज्ज चतुरंग सेना बाळगतात व जितेंद्रिय बनून चांगले आचरण करतात ते धनवान व तेजस्वी होतात.