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अ॒ग्नये॑ कु॒टरू॒नाल॑भते॒ वन॒स्पति॑भ्य॒ऽउलू॑कान॒ग्नीषोमा॑भ्यां॒ चाषा॑न॒श्विभ्यां॑ म॒यूरा॑न् मि॒त्रावरु॑णाभ्यां क॒पोता॑न् ॥२३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्नये॑। कु॒टरू॑न्। आ। ल॒भ॒ते॒। वन॒स्पति॑भ्य॒ इति॑ वन॒स्पति॑ऽभ्यः। उलू॑कान्। अ॒ग्नीषोमा॑भ्याम्। चाषा॑न्। अ॒श्विभ्या॒मित्य॒श्विऽभ्या॑म्। म॒यूरा॑न्। मि॒त्रावरु॑णाभ्याम्। क॒पोता॑न् ॥२३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:24» मन्त्र:23


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे पक्षियों के गुण जाननेवाला जन (अग्नये) अग्नि के लिये (कुटरून्) मुर्गों (वनस्पतिभ्यः) वनस्पति अर्थात् विना पुष्प-फल देनेवाले वृक्षों के लिये (उलूकान्) उल्लू पक्षियों (अग्नीषोमाभ्याम्) अग्नि और सोम के लिये (चाषान्) नीलकण्ठ पक्षियों (अश्विभ्याम्) सूर्य-चन्द्रमा के लिये (मयूरान्) मयूरों तथा (मित्रावरुणाभ्याम्) मित्र और वरुण के लिये (कपोतान्) कबूतरों को (आ, लभते) अच्छे प्रकार प्राप्त होता है, वैसे इनको तुम भी प्राप्त होओ ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मुर्गा आदि पक्षियों के गुणों को जानते हैं, वे सदा इनको बढ़ाते हैं ॥२३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अग्नये) पावकाय (कुटरून्) कुक्कुटान् (आ) (लभते) (वनस्पतिभ्यः) (उलूकान्) (अग्नीषोमाभ्याम्) (चाषान्) (अश्विभ्याम्) (मयूरान्) (मित्रावरुणाभ्याम्) (कपोतान्) ॥२३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्या यथा पक्षिगुणविज्जनोऽग्नये कुटरून् वनस्पतिभ्य उलूकानग्नीषोमाभ्यां चाषानश्विभ्यां मयूरान् मित्रावरुणाभ्यां कपोतानालभते, तथैतान् यूयमप्यालभध्वम् ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये कुक्कुटादीनां पक्षिणां गुणान् जानन्ति, ते सदैतान् वर्धयन्ति ॥२३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक कोंबडे इत्यादी पक्षांचे गुण जाणतात ते सदैव त्यांची वाढ करतात.