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सोमा॑य ह॒ꣳसानाल॑भते वा॒यवे॑ ब॒लाका॑ऽइन्द्रा॒ग्निभ्यां॒ क्रुञ्चा॑न् मि॒त्राय॑ म॒द्गून् वरु॑णाय चक्रवा॒कान् ॥२२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सोमा॑य। ह॒ꣳसान्। आ। ल॒भ॒ते॒। वा॒यवे॑। ब॒लाकाः॑। इ॒न्द्रा॒ग्निभ्या॒मिती॑न्द्रा॒ग्निऽभ्या॑म्। क्रुञ्चा॑न्। मि॒त्राय॑। म॒द्गून्। वरु॑णाय। च॒क्र॒वा॒कानिति॑ चक्रऽवा॒कान् ॥२२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:24» मन्त्र:22


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे पक्षियों के गुण का विशेष ज्ञान रखनेवाला पुरुष (सोमाय) चन्द्रमा वा औषधियों में उत्तम सोम के लिये (हंसान्) हंसों (वायवे) पवन के लिये (बलाकाः) बगुलियों (इन्द्राग्निभ्याम्) इन्द्र और अग्नि के लिये (क्रुञ्चान्) सारसों (मित्राय) मित्र के लिये (मद्गून्) जल के कौओं वा सुतरमुर्गों और (वरुणाय) वरुण के लिये (चक्रवाकान्) चकई-चकवों को (आ, लभते) अच्छे प्रकार प्राप्त होता है, वैसे तुम भी प्राप्त होओ ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को जो उत्तम पक्षी हैं, वे अच्छे यत्न के साथ पालन कर बढ़ाने चाहियें ॥२२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(सोमाय) चन्द्रायौषधिराजाय वा (हंसान्) पक्षिविशेषान् (आ, लभते) (वायवे) (बलाकाः) बलाकानां स्त्रियः (इन्द्राग्निभ्याम्) (क्रुञ्चान्) सारसान् (मित्राय) (मद्गून्) जलकाकान् (वरुणाय) (चक्रवाकान्) ॥२२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा पक्षिगुणविज्ञानी जनः सोमाय हंसान् वायवे बलाका इन्द्राग्निभ्यां क्रुञ्चान् मित्राय मद्गून् वरुणाय चक्रवाकानालभते तथा यूयमप्यालभध्वम् ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्य उत्तमाः पक्षिणः सन्ति, ते प्रयत्नेन संपाल्य वर्द्धनीयाः ॥२२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी प्रयत्नपूर्वक उत्तम पक्ष्यांचे पालन केले पाहिजे व त्यांची वाढ केली पाहिजे.