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स॒मु॒द्राय॑ शिशु॒मारा॒नाल॑भते प॒र्जन्या॑य म॒ण्डूका॑न॒द्भ्यो मत्स्या॑न् मि॒त्राय॑ कुली॒पया॒न् वरु॑णाय ना॒क्रान् ॥२१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒मु॒द्राय॑। शि॒शु॒मारा॒निति॑ शिशु॒ऽमारा॑न्। आ। ल॒भ॒ते॒। प॒र्जन्या॑य। म॒ण्डूका॑न्। अ॒द्भ्य इत्य॒प्ऽभ्यः। मत्स्या॑न्। मि॒त्राय॑। कु॒ली॒पया॑न्। वरु॑णाय। ना॒क्रान् ॥२१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:24» मन्त्र:21


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन किसके अर्थ सेवन करने चाहियें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे जल के जीवों की पालना करने को जाननेवाला जन (समुद्राय) महाजलाशय समुद्र के किये (शिशुमारान्) जो अपने बालकों को मार डालते हैं, उन शिशुमारों (पर्जन्याय) मेघ के लिये (मण्डूकान्) मेंडकों (अद्भ्यः) जलों के लिये (मत्स्यान्) मछलियों (मित्राय) मित्र के समान सुख देते हुए सूर्य्य के लिये (कुलीपयान्) कुलीपय नाम के जंगली पशुओं और (वरुणाय) वरुण के लिये (नाक्रान्) नाके मगर जलजन्तुओं को (आ, लभते) अच्छे प्रकार प्राप्त होता है, वैसे तुम भी प्राप्त होओ ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे जलचर जन्तुओं के गुण जाननेवाले पुरुष उन जल के जन्तुओं को बढ़ा वा पकड़ सकते हैं, वैसा आचरण और लोग भी करें। २१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः के किमर्था सेवनीया इत्याह ॥

अन्वय:

(समुद्राय) महाजलाशयाय (शिशुमारान्) ये स्वशिशून् मारयन्ति तान् (आ) (लभते) (पर्जन्याय) मेघाय (मण्डूकान्) (अद्भ्यः) (मत्स्यान्) (मित्राय) (कुलीपयान्) (वरुणाय) (नाक्रान्) ॥२१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा जलजन्तुपालनवित्समुद्राय शिशुमारान् पर्जन्याय मण्डूकानद्भ्यो मत्स्यान् मित्राय कुलीपयान् वरुणाय नाक्रानालभते तथा यूयमप्यालभध्वम् ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - यथा जलचरजन्तुगुणविदस्तान् वर्धयितुं निग्रहीतुं वा शक्नुवन्ति तथाऽन्येऽप्याचरन्तु ॥२१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जलचर जीवांचे गुण जाणणारे जलचर संशोधक त्या जलातील जीवांची वाढ करू शकतात किंवा पकडू शकतात तसे इतर लोकांनीही वागावे.