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प॒ष्ठ॒वाहो॑ वि॒राज॑ऽउ॒क्षाणो॑ बृह॒त्याऽऋ॑ष॒भाः क॒कुभे॑ऽन॒ड्वाहः॑ प॒ङ्क्त्यै धे॒नवोऽति॑छन्दसे ॥१३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प॒ष्ठ॒वाह॒ इति॑ पष्ठ॒वाहः॑। वि॒राज॒ इति॑ वि॒ऽराजे॑। उ॒क्षाणः॑। बृ॒ह॒त्यै। ऋ॒ष॒भाः। क॒कुभे॑। अ॒न॒ड्वाहः॑। प॒ङ्क्त्यै। धे॒नवः॑। अति॑छन्दस॒ऽइत्यति॑ऽछन्दसे ॥१३।

यजुर्वेद » अध्याय:24» मन्त्र:13


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जिन मनुष्यों ने (विराजे) विराट् छन्द के लिये (पष्ठवाहः) जो पीठ से पदार्थों को पहुँचाते (बृहत्यै) बृहती छन्द के अर्थ को (उक्षाणः) वीर्य सींचने में समर्थ (ककुभे) ककुप् उष्णिक्छन्द के अर्थ को (ऋषभाः) अतिबलवान् प्राणी (पङ्क्त्यै) पङ्क्ति छन्द के अर्थ को (अनड्वाहः) लढ़ा पहुँचाने में समर्थ बैलों को (अतिछन्दसे) अतिजगती आदि छन्द के अर्थ को (धेनवः) दूध देनेवाली गौएँ स्वीकार कीं, वे अतीव सुख पाते हैं ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे विद्वान् विराट् आदि छन्दों के लिये बहुत विद्या-विषयक कामों को सिद्ध करते हैं, वैसे ऊँट आदि पशुओं से गृहस्थ लोग समस्त कामों को सिद्ध करें ॥१३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(पष्ठवाहः) ये पष्ठेन पृष्ठेन वहन्ति ते (विराजे) विराट्छन्दसे (उक्षाणः) वीर्यसेचनसमर्थाः (बृहत्यै) बृहतीछन्दोऽर्थाय (ऋषभाः) बलिष्ठाः (ककुभे) ककुबुष्णिक्छन्दोऽर्थाय (अनड्वाहः) शकटवहनसमर्थाः (पङ्क्त्यै) पङ्क्तिच्छन्दोऽर्थाय (धेनवः) दुग्धदात्र्यः (अतिछन्दसे) अतिजगत्यादिच्छन्दोऽर्थाय ॥१३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यैर्मनुष्यैर्विराजे पष्ठवाहो बृहत्या उक्षाणः ककुभे ऋषभाः पङ्क्त्या अनड्वाहोऽतिच्छन्दसे धेनवः स्वीक्रियन्ते तेऽतिसुखं लभन्ते ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - यथा विद्वांसो विराडादिच्छन्दोभ्यो बहूनि विद्याकार्याणि साध्नुवन्ति तथोष्ट्रादिभ्यः पशुभ्यो गृहस्था अखिलानि कार्य्याणि साध्नुयुः ॥१३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे विद्वान लोक विराट् बृहती, उष्णिक इत्यादी छंदापासून भिन्न भिन्न अर्थाची विद्या प्राप्त करतात. तसे उंट, बैल गाय इत्यादी पशूंकडून गृहस्थी लोकांनी संपूर्ण कार्य सिद्ध करावे.