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त्र्यव॑यो गाय॒त्र्यै पञ्चा॑वयस्त्रि॒ष्टुभे॑ दित्य॒वाहो॒ जग॑त्यै त्रिव॒त्साऽअ॑नु॒ष्टुभे॑ तुर्य॒वाह॑ऽउ॒ष्णिहे॑ ॥१२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्र्यव॑य॒ इति॑ त्रि॒ऽअव॑यः। गा॒य॒त्र्यै। पञ्चा॑वय इति॒ पञ्च॑ऽअवयः। त्रि॒ष्टुभे॑। त्रि॒स्तुभ॒ इति॑ त्रि॒स्तुभे॑। दि॒त्य॒वाह॒ऽइति॑ दित्य॒ऽवाहः॑। जग॑त्यै। त्रि॒ऽव॒त्साऽइति॑ त्रिऽव॒त्साः। अ॒नु॒ष्टुभे॑। अ॒नु॒स्तुभ॒ इत्य॑नु॒ऽस्तुभे॑। तु॒र्य॒वाह॒ इति॑ तुर्य॒ऽवाहः॑। उ॒ष्णिहे॑ ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:24» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (त्र्यवयः) ऐसे हैं कि जिन की तीन भेड़ें वे (गायत्र्यै) गाते हुओं की रक्षा करनेवाली के लिये (पञ्चावयः) जिन के पाँच भेड़ें हैं, वे (त्रिष्टुभे) तीन अर्थात् शरीर, वाणी और मन सम्बन्धी सुखों के स्थिर करने के लिये। जो (दित्यवाहः) विनाश में न प्रसिद्ध हों, उन की प्राप्ति करानेवाले (जगत्यै) संसार की रक्षा करने की जो क्रिया उस के लिये (त्रिवत्साः) जिन के तीन स्थानों में निवास वे (अनुष्टुभे) पीछे से रोकने की क्रिया के लिये और (तुर्यवाहः) जो अपने पशुओं में चौथे को प्राप्त करानेवाले हैं, वे (उष्णिहे) जिस क्रिया से उत्तमता के साथ प्रसन्न हों, उस क्रिया के लिये अच्छा यत्न करें, वे सुखी हों ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे विद्वान् जन पढ़े हुए गायत्री आदि छन्दों के अर्थों से सुखों को बढ़ाते हैं, वैसे पशुओं के पालनेवाले घी आदि पदार्थों को बढ़ावें ॥१२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(त्र्यवयः) तिस्रोऽवयो येषां ते (गायत्र्यै) गायतो रक्षिकायै (पञ्चावयः) पञ्च अवयो येषान्ते (त्रिष्टुभे) त्रयाणां शारीरवाचिकमानसानां सुखानां स्तम्भनाय स्थिरीकरणाय (दित्यवाहः) दितौ खण्डने भवा दित्या न दित्या अदित्यास्तान् ये वहन्ति प्रापयन्ति ते दित्यवाहः (जगत्यै) जगद्रक्षणायै क्रियायै (त्रिवत्साः) त्रयो वत्सास्त्रिषु वा निवासो येषान्ते (अनुष्टुभे) अनुस्तम्भाय (तुर्यवाहः) ये तुर्यं चतुर्थं वहन्ति ते (उष्णिहे) उत्कृष्टतया स्निह्यति यया तस्यै क्रियायै ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये त्र्यवयो गायत्र्यै पञ्चावयस्त्रिष्टुभे दित्यवाहो जगत्यै त्रिवत्सा अनुष्टुभे तुर्यवाह उष्णिहे च प्रयतेरँस्ते सुखिनः स्युः ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - यथा विद्वांसोऽधीतैर्गायत्र्यादिछन्दोऽर्थैः सुखानि वर्धयन्ते, तथा पशुपालका घृतादीनि वर्द्धयेयुः ॥१२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे विद्वान लोक गायत्री छंदाचा अर्थ जाणून सुख वाढवितात तसे पशूपालन करणाऱ्यांनी घृत इत्यादी पदार्थ वाढवावे.