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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
ईश्वर की उपासना कैसे करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) दान देनेहारे जन ! जैसे (होता) ग्रहीता पुरुष (सोमस्य) सब ऐश्वर्य से युक्त (महिम्नः) बड़प्पन के होने से (प्रजापतिम्) विश्व के पालक स्वामी की (यक्षत्) पूजा करे वा उस को (जुषताम्) सेवन से प्रसन्न करे और (सोमम्) सब उत्तम ओषधियों के रस को (पिबतु) पीवे, वैसे तू (यज) उस की पूजा कर और उत्तम ओषधि के रस को पिया कर ॥६४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् लोग इस जगत् में रचना आदि विशेष चिह्नों से परमात्मा की महिमा को जान के इस की उपासना करते हैं, वैसे ही तुम लोग भी इस की उपासना करो, जैसे ये विद्वान् युक्तिपूर्वक पथ्य पदार्थों का सेवन कर नीरोग होते हैं, वैसे आप लोग भी हों ॥६४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
ईश्वरः कथमुपास्य इत्याह ॥
अन्वय:
(होता) आदाता (यक्षत्) यजेत् पूजयेत् (प्रजापतिम्) विश्वस्य पालकं स्वामिनम् (सोमस्य) सकलैश्वर्य्ययुक्तस्य (महिम्नः) महतो भावस्य सकाशात् (जुषताम्) (पिबतु) (सोमम्) सर्वौषधिरसम् (होतः) दातः (यज) पूजय ॥६४ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे होतः ! यथा होता सोमस्य महिम्नः प्रजापतिं यक्षज्जुषतां च सोमं च पिबतु तथा त्वं यज पिब च ॥६४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यथा विद्वांसोऽस्मिञ्जगति रचनादिविशेषैः परमात्मनो महिमानं विदित्वैनमुपासते, तथैतं यूयमप्युपाध्वं यथेमे युक्त्यौषधानि सेवित्वाऽरोगा जायन्ते, तथा भवन्तोऽपि भवन्तु ॥६४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! ज्याप्रमाणे लोक विद्वान लोक या जगाची रचना इत्यादी विशेष चिन्हांना पाहून परमेश्वराची महिना जाणतात व त्याची उपासना करतात. त्याप्रमाणे तुम्ही लोकही त्याची उपासना करा. जसे विद्वान लोक पथ्य पाळून युक्तिपूर्वक पदार्थांचे सेवन करतात व निरोगी राहतात तसे तुम्ही लोक राहा.