वांछित मन्त्र चुनें

सु॒भूः स्व॑य॒म्भूः प्र॑थ॒मो᳕ऽन्तर्म॑हत्य᳖र्ण॒वे। द॒धे ह॒ गर्भ॑मृ॒त्वियं॒ यतो॑ जा॒तः प्र॒जाप॑तिः ॥६३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒भूरिति॑ सु॒ऽभूः। स्व॒य॒म्भूरिति॑ स्व॒य॒म्ऽभूः। प्र॒थ॒मः। अ॒न्तः। म॒ह॒ति। अ॒र्ण॒वे। द॒धे। ह॒। गर्भ॑म्। ऋ॒त्विय॑म्। यतः॑। जा॒तः। प्र॒जाप॑ति॒रिति॑ प्र॒जाऽप॑तिः ॥६३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:63


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासु जन ! (यतः) जिस जगदीश्वर से (प्रजापतिः) विश्व का रक्षक सूर्य (जातः) उत्पन्न हुआ है और जो (सुभूः) सुन्दर विद्यमान (स्वयम्भूः) जो अपने आप प्रसिद्ध उत्पत्तिनाशरहित (प्रथमः) सब से प्रथम जगदीश्वर (महति) बड़े विस्तृत (अर्णवे) जलों से सम्बद्ध हुए संसार के (अन्तः) बीच (ऋत्वियम्) समयानुकूल प्राप्त (गर्भम्) बीज को (दधे) धारण करता है, (ह) उसी की सब लोग उपासना करें ॥६३ ॥
भावार्थभाषाः - यदि जो मनुष्य लोग सूर्यादि लोकों के उत्तम कारण प्रकृति को और उस प्रकृति में उत्पत्ति की शक्ति को धारण करनेहारे परमात्मा को जानें तो वे जन इस जगत् में विस्तृत सुखवाले होवें ॥६३ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वरः कीदृश इत्याह ॥

अन्वय:

(सुभूः) यः सुष्ठु भवतीति (स्वयम्भूः) यः स्वयम्भवत्युत्पत्तिनाशरहितः (प्रथमः) आदिमः (अन्तः) मध्ये (महति) (अर्णवे) यत्रार्णांस्युदकानि संबद्धानि सन्ति तस्मिन् संसारे (दधे) दधाति (ह) किल (गर्भम्) बीजम् (ऋत्वियम्) ऋतु सम्प्राप्तोऽस्य तम् (यतः) यस्मात् (जातः) (प्रजापतिः) प्रजापालकः सूर्यः ॥६३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासो ! यतः प्रजापतिर्जातो यश्च सुभूः स्वयम्भूः प्रथमो जगदीश्वरो महत्यर्णवऽन्तर्ऋत्वियं गर्भं दधे तं ह सर्वे जना उपासीरन् ॥६३।
भावार्थभाषाः - यदि ये मनुष्याः सूर्य्यादीनां परं कारणं प्रकृतिं तत्र बीजधारकं परमात्मानं च विजानीयुस्तर्हि तेऽस्मिन् संसारे विस्तीर्णसुखा भवेयुः ॥६३।
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे, सूर्य वगैरे गोलांचे कारण प्रकृती आहे हे जाणतात व त्या प्रकृतीमध्ये उत्पत्तीशक्ती धोरण करणाऱ्या परमेश्वराला जाणतात. त्यांना या जगात खूप सुख मिळू शकते.