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इ॒यं वेदिः॒ परो॒ऽअन्तः॑ पृथि॒व्याऽअ॒यं य॒ज्ञो भुव॑नस्य॒ नाभिः॑। अ॒यꣳ सोमो॒ वृष्णो॒ऽअश्व॑स्य॒ रेतो॑ ब्र॒ह्मायं वा॒चः प॑र॒मं व्यो॑म ॥६२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒यम्। वेदिः॑। परः॑। अन्तः॑। पृ॒थि॒व्याः। अ॒यम्। य॒ज्ञः। भुव॑नस्य। नाभिः॑। अ॒यम्। सोमः॑। वृष्णः॑। अश्व॑स्य। रेतः॑। ब्र॒ह्मा। अ॒यम्। वा॒चः। प॒र॒मम्। व्यो॒मेति॒ विऽओ॑म ॥६२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:62


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पूर्व मन्त्र में कहे प्रश्नों के उत्तर अगले मन्त्र में कहे हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासु जन ! (इयम्) यह (वेदिः) मध्यरेखा (पृथिव्याः) भूमि के (परः) परभाग की (अन्तः) सीमा है, (अयम्) यह प्रत्यक्ष गुणोंवाला (यज्ञः) सब को पूजनीय जगदीश्वर (भुवनस्य) संसार की (नाभिः) नियत स्थिति का बन्धक है, (अयम्) यह (सोमः) ओषधियों में उत्तम अंशुमान् आदि सोम (वृष्णः) पराक्रमकर्त्ता (अश्वस्य) बलवान् जन का (रेतः) पराक्रम है और (अयम्) यह (ब्रह्मा) चारों वेद का ज्ञाता (वाचः) तीन वेदरूप वाणी का (परमम्) उत्तम (व्योम) स्थान है, तू इस को जान ॥६२ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो इस भूगोल की मध्यस्थ रेखा की जावे तो वह ऊपर से भूमि के अन्त को प्राप्त होती हुई व्याससंज्ञक होती है। यही भूमि की सीमा है। सब लोकों के मध्य आकर्षणकर्त्ता जगदीश्वर है। सब प्राणियों को पराक्रमकर्त्ता ओषधियों में उत्तम अंशुमान् आदि सोम है और वेदपारग पुरुष वाणी का पारगन्ता है, यह तुम जानो ॥६२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पूर्वप्रश्नानामुत्तराण्याह ॥

अन्वय:

(इयम्) (वेदिः) मध्यरेखा (परः) (अन्तः) (पृथिव्याः) भूमेः (अयम्) (यज्ञः) सर्वैः पूजनीयो जगदीश्वरः (भुवनस्य) संसारस्य (नाभिः) (अयम्) (सोमः) ओषधिराजः (वृष्णः) वीर्यकरस्य (अश्वस्य) बलेन युक्तस्य जनस्य (रेतः) (ब्रह्मा) चतुर्वेदवित् (अयम्) (वाचः) वाण्याः (परमम्) (व्योम) स्थानम् ॥६२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासो ! इयं वेदिः पृथिव्याः परोऽन्तोऽयं यज्ञो भुवनस्य नाभिरयं सोमो वृष्णोऽश्वस्य रेतोऽयं ब्रह्मा वाचः परमं व्योमास्तीति विद्धि ॥६२ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यद्यस्य भूगोलस्य मध्यस्था रेखा क्रियते तर्हि सा उपरिष्टाद् भूमेरन्तं प्राप्नुवती सती व्याससंज्ञां लभते। अयमेव भूमेरन्तोऽस्ति। सर्वेषां मध्याकर्षणं जगदीश्वरः। सर्वेषां प्राणिनां वीर्यकर ओषधिराजः सोमो, वेदपारगो वाक्पारगोऽस्तीति यूयं विजानीत ॥६२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! या भूगोलाच्या मध्यातून जाणारी ही रेषा भूमीच्या शेवटापर्यंत जाते तिला व्यास म्हणतात हीच भूमीची सीमा होय. सर्व गोलांचा आकर्षणकर्ता ईश्वर आहे. सर्व औषधांमध्ये उत्तम अंशुमान इत्यादी सोम प्राण्यांना बलवान करते. वेदाचा पूर्ण ज्ञाता असलेला पुरुष वाणीचा यथायोग्य उपयोग करतो हे तुम्ही जाणा.