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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब किससे ईश्वर की प्राप्ति होने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे शिक्षा करनेवाले सज्जन (काम्या) मनोहर (हरी) ले जाने हारे (विपक्षसा) जो कि विविध प्रकारों से भलीभाँति ग्रहण किये हुए (शोणा) लाल-लाल रंग से युक्त (धृष्णू) अतिपुष्ट (नृवाहसा) मनुष्यों को एक देश से दूसरे देश को पहुँचाने हारे दो घोड़ों को (रथे) में (युञ्जन्ति) जोड़ते हैं, वैसे योगीजन (अस्य) इस परमेश्वर के बीच इन्द्रियाँ, अन्तःकरण और प्राणों को युक्त करते हैं ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे मनुष्य अच्छे सिखाये हुए घोड़ों से युक्त रथ से एक स्थान से दूसरे स्थान को शीघ्र प्राप्त होते हैं, वैसे ही विद्या, सज्जनों का सङ्ग और योगाभ्यास से परमात्मा को शीघ्र प्राप्त होते हैं ॥६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ केनेश्वरः प्राप्तव्य इत्याह ॥
अन्वय:
(युञ्जन्ति) (अस्य) जीवस्य (काम्या) कमनीयौ (हरी) हरणशीलौ (विपक्षसा) विविधैः परिगृहीतौ (रथे) याने (शोणा) रक्तगुणविशिष्टौ (धृष्णू) दृढौ (नृवाहसा) नृणां वाहकौ ॥६ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा शिक्षकाः काम्या हरी विपक्षसा शोणा धृष्णू नृवाहसा रथे युञ्जन्ति, तथा योगिनोऽस्य परमेश्वरस्य मध्य इन्द्रियाणि मनः प्राणाँश्च युञ्जन्ति ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा मनुष्याः सुशिक्षितैर्हयैर्युक्तेन यानेन स्थानान्तरं सद्यः प्राप्नुवन्ति, तथैव विद्यासत्सङ्गयोगाभ्यासैः परमात्मानं क्षिप्रं प्राप्नुवन्ति ॥६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसे प्रशिक्षित घोडे असलेल्या रथाने एका स्थानाहून दुसऱ्या स्थानी जशी शीघ्र पोचतात, तसेच विद्या, सज्जनांची संगती व योगाभ्यासाने परमेश्वराला त्वरेने प्राप्त करता येते.