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कत्य॑स्य वि॒ष्ठाः कत्य॒क्षरा॑णि॒ कति॒ होमा॑सः कति॒धा समि॑द्धः। य॒ज्ञस्य॑ त्वा वि॒दथा॑ पृच्छ॒मत्र॒ कति॒ होता॑रऽऋतु॒शो य॑जन्ति ॥५७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कति॑। अ॒स्य॒। वि॒ष्ठाः। वि॒स्था इति॑ वि॒ऽस्थाः। कति॑। अ॒क्षरा॑णि। कति॑। होमा॑सः। क॒ति॒धा। समि॑द्ध॒ इति॒ सम्ऽइ॑द्धः। य॒ज्ञस्य॑। त्वा॒। वि॒दथा॑। पृ॒च्छ॒म्। अत्र॑। कति॑। होता॑रः। ऋ॒तु॒श इत्यृ॑तु॒ऽशः। य॒ज॒न्ति॒ ॥५७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:57


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी अगले मन्त्र में प्रश्न कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (अस्य) इस (यज्ञस्य) संयोग से उत्पन्न हुए संसाररूप यज्ञ के (कति) कितने (विष्ठाः) विशेष कर संसाररूप यज्ञ जिनमें स्थित हो वे (कति) कितने इस के (अक्षराणि) जलादि साधन (कति) कितने (होमासः) देने-लेने योग्य पदार्थ (कतिधा) कितने प्रकारों से (समिद्धः) ज्ञानादि के प्रकाशक पदार्थ समिधरूप (कति) कितने (होतारः) होता अर्थात् देने-लेने आदि व्यवहार के कर्त्ता (ऋतुशः) वसन्तादि प्रत्येक ऋतु में (यजन्ति) सङ्गम करते हैं, इस प्रकार (अत्र) इस विषय में (विदथा) विज्ञानों को (त्वा) आप से मैं (पृच्छम्) पूछता हूँ ॥५७ ॥
भावार्थभाषाः - यह जगत् कहाँ स्थित है? कितने इसकी उत्पत्ति के साधन? कितने व्यापार के योग्य वस्तु? कितने प्रकार का ज्ञानादि प्रकाशक वस्तु? और कितने व्यवहार करने हारे हैं? इन पाँच प्रश्नों के उत्तर अगले मन्त्र में जान लेना चाहिये ॥५७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रश्नानाह ॥

अन्वय:

(कति) (अस्य) (विष्ठाः) विशेषेण तिष्ठति यज्ञो यासु ताः (कति) (अक्षराणि) उदकानि। अक्षरमित्युदकनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१२) (कति) (होमासः) दानाऽऽदानानि (कतिधा) कतिप्रकारैः (समिद्धः) ज्ञानदिप्रकाशकाः समिद्रूपाः। अत्र छान्दसो वर्णागमस्तेन धस्य द्वित्वं सम्पन्नम्। (यज्ञस्य) संयोगादुत्पन्नस्य जगतः (त्वा) त्वाम् (विदथा) विज्ञानानि (पृच्छम्) पृच्छामि (अत्र) (कति) (होतारः) (ऋतुशः) ऋतुमृतुं प्रति (यजन्ति) सङ्गच्छन्ते ॥५७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन्नस्य यज्ञस्य कति विष्ठाः? कत्यक्षराणि? कति होमासः? कतिधा समिद्धः? कति होतार ऋतुशो यजन्तीत्यत्र विषये विदथा त्वाऽहं पृच्छम् ॥५७ ॥
भावार्थभाषाः - इदं जगत्क्व तिष्ठति? कत्यस्य निर्माणसाधनानि? कति व्यापारयोग्यानि? कतिविधं ज्ञानादिप्रकाशकम्? कति व्यवहर्त्तार? इति पञ्च प्रश्नास्तेषामुत्तराण्युत्तरत्र वेद्यानि ॥५७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या जगतरूपी यज्ञाचा आधार कुठे स्थित असतो? त्याच्या उत्पत्तीची साधने कोणती? देवाण घेवाणाच्या वस्तू कोणत्या? ज्ञानाचा प्रसार करणाऱ्या वस्तू कोणत्या? व त्यांचा व्यवहार करणारे कोण? या प्रश्नांची उत्तरे पुढील मंत्रातून जाणावी.