काऽईम॑रे पिशङ्गि॒ला काऽर्इं॑ कुरुपिशङ्गि॒ला। कऽर्इ॑मा॒स्कन्द॑मर्षति॒ कऽर्इं॒ पन्थां॒ विस॑र्पति ॥५५ ॥
का। ई॒म्। अ॒रे॒। पि॒श॒ङ्गि॒ला। का। ई॒म्। कु॒रु॒पि॒श॒ङ्गि॒लेति॑ कुरुऽपिशङ्गि॒ला। कः। ई॒म्। आ॒स्कन्द॒मित्या॒ऽस्कन्द॑म्। अ॒र्ष॒ति॒। कः। ई॒म्। पन्था॑म्। वि। स॒र्प॒ति॒ ॥५५ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर अगले मन्त्र में प्रश्न कहते हैं ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः प्रश्नानाह ॥
(का) (ईम्) समुच्चये (अरे) नीचसंबोधने (पिशङ्गिला) रूपावरणकारिणी (का) (ईम्) (कुरुपिशङ्गिला) (कः) (ईम्) (आस्कन्दम्) (अर्षति) प्राप्नोति (कः) (ईम्) उदकस्य (पन्थाम्) मार्गम् (वि) (सर्पति) ॥५५ ॥