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शं ते॒ परे॑भ्यो॒ गात्रे॑भ्यः॒ शम॒स्त्वव॑रेभ्यः। शम॒स्थभ्यो॑ म॒ज्जभ्यः॒ शम्व॑स्तु त॒न्वै᳕ तव॑ ॥४४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शम्। ते॒। परे॑भ्यः। गात्रे॑भ्यः। शम्। अ॒स्तु॒। अव॑रेभ्यः। शम्। अ॒स्थभ्य॒ इत्य॒स्थऽभ्यः॑। म॒ज्जभ्य॒ इति॑ म॒ज्जऽभ्यः॑। शम्। ऊँऽइत्यूँ॑। अ॒स्तु॒। त॒न्वै। तव॑ ॥४४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:44


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर माता आदि को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्या चाहनेवाले ! जैसे पृथिवी आदि तत्त्व (तव) तेरे (तन्वै) शरीर के लिये (शम्) सुखहेतु (अस्तु) हो वा (परेभ्यः) अत्यन्त उत्तम (गात्रेभ्यः) अङ्गों के लिये (शम्) सुख (उ) और (अवरेभ्यः) उत्तमों से न्यून मध्य तथा निकृष्ट अङ्गों के लिये (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो और (अस्थभ्यः) हड्डी (मज्जभ्यः) और शरीर में रहनेवाली चरबी के लिये (शम्) सुखहेतु हो, वैसे अपने उत्तम गुण-कर्म और स्वभाव से अध्यापक लोग (ते) तेरे लिये सुख के करनेवाले हों ॥४४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे माता, पिता, पढ़ाने और उपदेश करनेवालों को अपने सन्तानों के पुष्ट अङ्ग और पुष्ट धातु हों, जिनसे दूसरों के कल्याण करने के योग्य हों, वैसे पढ़ाना और उपदेश करना चाहिये ॥४४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मात्रादिभिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(शम्) सुखम् (ते) तुभ्यम् (परेभ्यः) उत्कृष्टेभ्यः (गात्रेभ्यः) (शम्) (अस्तु) (अवरेभ्यः) मध्यस्थेभ्यो निकृष्टेभ्यो वा (शम्) (अस्थभ्यः) छन्दस्यपि दृश्यते [अ०६.४.७३] इत्यनेन हलादावप्यनङ्। (मज्जभ्यः) (शम्) (उ) (अस्तु) (तन्वै) शरीराय (तव) ॥४४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्यामिच्छो ! यथा पृथिव्यादितत्त्वं तव तन्वै शमस्तु परेभ्यो गात्रेभ्यः शम्ववरेभ्यो गात्रेभ्यः शमस्तु। अस्थभ्यो मज्जभ्यः शमस्तु तथा स्वकीयैरुत्तमगुणकर्मस्वभावैरध्यापकास्ते शंकरा भवन्तु ॥४४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा मातापित्रध्यापकोपदेशकैः सन्तानानां दृढाङ्गानि दृढा धातवश्च स्युर्यैः कल्याणं कर्त्तुमर्हेयुस्तथाऽध्यापनीयमुपदेष्टव्यं च ॥४४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माता, पिता, अध्यापक व उपदेशक यांनी मुलांचे शरीर धष्टपुष्ट करावे व त्यांनी बलवान बनून दुसऱ्यांचे कल्याण करावे. अशा प्रकारची शिकवण व उपदेश करावा.