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द्यौस्ते॑ पृथि॒व्य᳕न्तरि॑क्षं वा॒युश्छि॒द्रं पृ॑णातु ते। सूर्य॑स्ते॒ नक्ष॑त्रैः स॒ह लो॒कं कृ॑णोतु साधु॒या ॥४३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द्यौः। ते॒। पृ॒थि॒वी। अ॒न्तरि॑क्षम्। वा॒युः। छि॒द्रम्। पृ॒णा॒तु॒। ते॒। सूर्यः॑। ते। नक्ष॑त्रैः। स॒ह। लो॒कम्। कृ॒णो॒तु॒। सा॒धु॒येति॑ साधु॒ऽया ॥४३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:43


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अध्यापकादि कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पढ़ने या पढ़ाने हारी स्त्रियो ! जैसे (द्यौः) प्रकाशरूप बिजुली (पृथिवी) भूमि (अन्तरिक्षम्) आकाश (वायुः) पवन (सूर्य्यः) सूर्यलोक और (नक्षत्रैः) तारागणों के (सह) साथ चन्द्रलोक (ते) तेरे (छिद्रम्) प्रत्येक इन्द्रिय को (पृणातु) सुख देवें (ते) तेरे व्यवहार को सिद्ध करें, वैसे (ते) तेरे (साधुया) उत्तम सत्य (लोकम्) देखने योग्य लोक को (कृणोतु) सिद्ध करें ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पृथिवी आदि सुख देने और सूर्य आदि पदार्थ प्रकाश करनेवाले हैं, वैसे ही पढ़ानेवाले और उपदेश करनेवाले वा पढ़ाने और उपदेश करनेवाली स्त्री सब को अच्छे मार्ग में स्थापन कर विद्या के प्रकाश को उत्पन्न करें ॥४३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्यापकादयः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

(द्यौः) प्रकाशरूपा विद्युत् (ते) तव (पृथिवी) भूमिः (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (वायुः) पवनः (छिद्रम्) इन्द्रियम् (पृणातु) सुखयतु (ते) तव (सूर्य्यः) सविता (ते) तव (नक्षत्रैः) (सह) (लोकम्) दर्शनीयम् (कृणोतु) (साधुया) साधु सत्यम् ॥४३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे शिष्येऽध्यापिके वा ! यथा द्यौः पृथिव्यन्तरिक्षं वायुः सूर्य्यो नक्षत्रैः सह चन्द्रश्च ते छिद्रं पृणातु ते तव व्यवहारं साध्नोतु, तथा ते तव साधुया लोकं कृणोतु ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा पृथिव्यादयः सुखप्रदाः सूर्यादयः प्रकाशकाः पदार्थाः सन्ति, तथैवाऽध्यापका उपदेशकाश्चाऽध्यापिका अप्युपदेशिकाश्च सर्वान् सन्मार्गस्थान् कृत्वा विद्याप्रकाशं जनयन्तु ॥४३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी पृथ्वी वगैरे पदार्थ सुख देणारे आणि सूर्य वगैरे पदार्थ प्रकाश देणारे असतात, तसेच अध्यापक व उपदेशक आणि अध्यापिका व उपदेशिका यांनी सर्वांना चांगल्या मार्गाकडे वळवून विद्येचा प्रसार करावा.