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दैव्या॑ऽअध्व॒र्यव॒स्त्वाच्छ्य॑न्तु॒ वि च॑ शासतु। गात्रा॑णि पर्व॒शस्ते॒ सिमाः॑ कृण्वन्तु॒ शम्य॑न्तीः ॥४२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दैव्याः॑। अ॒ध्व॒र्यवः॑। त्वा॒। आ। छ्य॒न्तु॒। वि। च॒। शा॒स॒तु॒। गात्रा॑णि। प॒र्व॒श इति॑ पर्व॒ऽशः। ते। सिमाः॑। कृ॒ण्व॒न्तु॒। शम्य॑न्तीः ॥४२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:42


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पढ़ानेवाले आदि सज्जन कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्यार्थी वा विद्यार्थिनी ! (दैव्याः) विद्वानों में कुशल (अध्वर्यवः) अपनी रक्षारूप यज्ञ को चाहते हुए अध्यापक उपदेशक लोग (त्वा) तुझे (वि, शासतु) विशेष उपदेश दें (च) और (ते) तेरे दोषों का (आ, छ्यन्तु) विनाश करें (पर्वशः) सन्धि-सन्धि से (गात्राणि) अङ्गों को परखें (सिमाः) प्रेम से बँधी हुई (शम्यन्तीः) दुष्ट स्वभाव को दूर करती हुई माता आदि सती स्त्रियाँ भी ऐसी ही शिक्षा (कृण्वन्तु) करें ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापक, उपदेशक और अतिथि लोग जब बालकों को सिखलावें तब दोषों का विनाश कर उनको विद्या की प्राप्ति करावें, ऐसे पढ़ाने और उपदेश करनेवाली स्त्री भी कन्याओं के प्रति आचरण करें और वैद्यक शास्त्र की रीति से शरीर के अङ्गों की अच्छे प्रकार परीक्षा कर औषधि भी देवें ॥४२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्यापकादयः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

(दैव्याः) देवेषु विद्वत्सु कुशलाः (अध्वर्यवः) आत्मनोऽहिंसाख्ययज्ञमिच्छन्तः (त्वा) त्वाम् (आ) (छ्यन्तु) छिन्दन्तु (वि) (च) (शासतु) उपदिशन्तु (गात्राणि) अङ्गानि (पर्वशः) सन्धितः (ते) तव (सिमाः) प्रेमबद्धाः (कृण्वन्तु) (शम्यन्तीः) दुष्टस्वभावं निवारयन्त्यः ॥४२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्यार्थिन् विद्यार्थिनि वा ! दैव्या अध्वर्य्यवस्त्वा विशासतु च ते तव दोषानाच्छ्यन्तु पर्वशो गात्राणि परीक्षन्तां सिमाः शम्यन्तीः सत्यो मातरोऽप्येवं शिक्षां कृण्वन्तु ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापकोपदेशकाऽतिथयो यदा बालकान् शिक्षयेयुस्तदा दुर्गुणान् विनाश्य विद्यां प्रापयेयुरेवमध्यापिकोपदेशिका विदुष्यः स्त्रियोऽपि कन्याः प्रत्याचरेयुः। वैद्यकशास्त्ररीत्या शरीरावयवान् सम्यक्परीक्ष्यौषधान्यपि प्रदद्युः ॥४२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अध्यापक, उपदेशक व अतिथी लोकांनी बालकांना शिकविताना त्यांच्या दोषांचे निवारण करून त्यांना विद्या शिकवावी, तसेच अध्यापिका व उपदेशिका यांनी मुलींशी याप्रमाणेच वागावे आणि वैद्यकशास्रानुसार शरीराच्या अवयवातील दोष जाणून चांगल्याप्रकारे परीक्षा करून औषध द्यावे.