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म॒हाना॑म्न्यो रे॒वत्यो॒ विश्वा॒ आशाः॑ प्र॒भूव॑रीः। मैघी॑र्वि॒द्युतो॒ वाचः॑ सू॒चीभिः॑ शम्यन्तु त्वा ॥३५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒हाना॑म्न्य॒ इति॑ म॒हाऽना॑म्न्यः। रे॒वत्यः॑। विश्वाः॑। आशाः॑। प्र॒भूव॒रीरिति॑ प्र॒ऽभूव॑रीः। मैघीः॑। वि॒द्युत॒ इति॑ वि॒द्युऽतः॑। वाचः॑। सू॒चीभिः॑। श॒म्य॒न्तु॒। त्वा॒ ॥३५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:35


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे ज्ञान चाहने हारे (सूचीभिः) सन्धान करनेवाली क्रियाओं से जो (महानाम्न्यः) बड़े नामवाली (रेवत्यः) बहुत प्रकार के धन और (प्रभूवरीः) प्रभुता से युक्त (विश्वाः) समस्त (आशाः) दिशाओं के समान (मैघीः) वा मेघों की तड़क (विद्युतः) जो बिजुली उनके समान (वाचः) वाणी (त्वा) तुझ को (शम्यन्तु) शान्तियुक्त करें, उनका तू ग्रहण कर ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिनकी वाणी दिशा के तुल्य सब विद्याओं में व्याप्त होने और मेघ में ठहरी हुई बिजुली के समान अर्थ का प्रकाश करनेवाली है, वे विद्वान् शान्ति से जितेन्द्रियता को प्राप्त होकर बड़ी कीर्तिवाले होते हैं ॥३५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

(महानाम्न्यः) महन्नाम यासां ताः (रेवत्यः) बहुधनयुक्ताः (विश्वाः) अखिलाः (आशाः) दिशः (प्रभूवरीः) प्रभुत्वयुक्ताः (मैघीः) मेघानामिमाः (विद्युतः) (वाचः) (सूचीभिः) (शम्यन्तु) (त्वा) त्वाम् ॥३५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासो ! सूचीभिर्या महानाम्न्यो रेवत्यः प्रभूवरीर्विश्वा आशा इव मैघीर्विद्युत इव च वाचस्त्वा शम्यन्तु तास्त्वं गृहाण ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। येषां वाचो दिग्वत्सर्वासु विद्यासु व्यापिका मेघस्था विद्युदिव सर्वार्थप्रकाशिकाः सन्ति, ते शान्त्या जितेन्द्रियत्वं प्राप्य महाकीर्त्तयो जायन्ते ॥३५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्यांची वाणी मेघातील विद्युतप्रमाणे व दशदिशाप्रमाणे सर्व विद्यांमध्ये व्याप्त असते. ते विद्वान शांती व जितेंद्रियता प्राप्त करतात व महान कीर्तीही प्राप्त करतात.