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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह राजा कैसे आचरण करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो राजा (हरिणः) हरिण जैसे (यवम्) खेत में उगे हुए जौ आदि को (अत्ति) खाता है, वैसे (पुष्टम्) पुष्ट (पशुः) देखने योग्य अपने प्रजाजन को (न) नहीं (मन्यते) मानता अर्थात् प्रजा को हृष्ट-पुष्ट नहीं देख के खाता है वह (यत्) जो (अर्य्यजारा) स्वामी वा वैश्य कुल को अवस्था से बुड्ढा करने हारी दासी (शूद्रा) शूद्र की स्त्री के समान (पोषाय) पुष्टि के लिये (न) नहीं (धनायति) अपने धन को चाहता है ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - जो राजा पशु के समान व्यभिचार में वर्त्तमान प्रजा की पुष्टि को नहीं करता, वह धनाढ्य शूद्रकुल की स्त्री, जो कि जारकर्म करती हुई दासी है, उसके समान शीघ्र रोगी होकर अपनी पुष्टि का विनाश करके धनहीनता से दरिद्र हुआ मरता है। इससे राजा न कभी ईर्ष्या और न व्यभिचार का आचरण करे ॥३० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स राजा कथमाचरेदित्याह ॥
अन्वय:
(यत्) यः (हरिणः) पशु (यवम्) (अत्ति) (न) (पुष्टम्) (पशुः) पशुम् (मन्यते) (शूद्रा) शूद्रस्य स्त्री (यत्) या (अर्य्यजारा) अर्य्यौ स्वामिवैश्यौ जारयति वयसा हन्ति सा (न) निषेधे (पोषाय) पुष्टये (धनायति) आत्मनो धनमिच्छति ॥३० ॥
पदार्थान्वयभाषाः - यद् यो राजा हरिणो यवमत्तीव पुष्टं पशु न मन्यते, स यदर्य्यजारा शूद्रेव पोषाय न धनायति ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - यो राजा पशुवद् व्यभिचारे वर्त्तमानः प्रजापुष्टिं न करोति, स धनाढ्या शूद्रा जारा दासीव सद्यो रोगी भूत्वा पुष्टिं विनाश्य धनहीनतया दरिद्रः सन् म्रियते तस्माद् राजा कदाचिदीर्ष्यां व्यभिचारं च नाचरेत्॥३० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा पशूप्रमाणे व्याभिचारी असेल तो प्रजेला बलवान करू शकत नाही. शुद्र कुलातील दासी ज्याप्रमाणे व्याभिचार करून लवकर रोगी बनते. त्याप्रमाणेच धनाढ्य राजाचाही बलहीनतेमुळे नाश होतो व तो धनहीन व दरिद्री बनून मरतो. त्यामुळे राजाने कधीही ईषा करू नये व व्याभिचार करू नये.