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यद्दे॒वासो॑ ल॒लाम॑गुं॒ प्र वि॑ष्टी॒मिन॒मावि॑षुः। स॒क्थ्ना दे॑दिश्यते॒ नारी॑ स॒त्यस्या॑क्षि॒भुवो॑ यथा ॥२९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। दे॒वासः॑। ल॒लाम॑गु॒मिति॑ ल॒लाम॑ऽगुम्। प्र। वि॒ष्टी॒मिन॑म्। आवि॑षुः। स॒क्थ्ना। दे॒दि॒श्य॒ते॒। नारी॑। स॒त्यस्य॑। अ॒क्षि॒भुव॒ इत्य॑क्षि॒ऽभुवः॑। य॒था॒ ॥२९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:29


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (यथा) जैसे (सत्यस्य) सत्य (अक्षिभुवः) आँख के सामने प्रगट हुए प्रत्यक्ष व्यवहार के मध्य में वर्त्तमान (देवासः) विद्वान् लोग (सक्थ्ना) जाँघ वा और अपने शरीर के अङ्ग से (नारी) स्त्री के समान (यत्) जिस (विष्टीमिनम्) जिस में सुन्दर बहुत गीले पदार्थ विद्यमान हैं (ललामगुम्) और जिससे मनोवाञ्छित फल को प्राप्त होते हैं, ऐसे न्याय को (प्राविषुः) व्याप्त हों वा जैसे शास्त्रवेत्ता विद्वान् जन सत्य का (देदिश्यते) निरन्तर उपदेश करें, वैसे आप आचरण करो ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे शरीर के अङ्गों से स्त्री-पुरुष लखे जाते हैं, वैसे प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से सत्य लखा जाता है, उस सत्य से विद्वान् लोग जैसे पाने योग्य कोमलता को पावें, वैसे राजा-प्रजा के स्त्री-पुरुष विद्या से नम्रता को पाकर सुख को ढूँढें ॥२९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यत्) यम् (देवासः) विद्वांसः (ललामगुम्) येन न्यायेनेप्सां गच्छन्ति प्राप्नुवन्ति तम् (प्र) (विष्टीमिनम्) विशिष्टा बहवः ष्टीमा आर्द्रीभूताः पदार्था विद्यन्ते यस्मिँस्तम् (आविषुः) व्याप्नुयुः (सक्थ्ना) शरीरावयवेन (देदिश्यते) भृशमुपदिश्येत (नारी) नरस्य स्त्री (सत्यस्य) (अक्षिभुवः) यदक्षिणि भवति प्रत्यक्षं तस्य (यथा) ॥२९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! यथा सत्यस्याक्षिभुवो मध्ये वर्त्तमाना देवासः सक्थ्ना नारीव यद्विष्टीमिनं ललामगुं न्यायं प्राविषुर्यथा चाऽऽप्तेन सत्यमेव देदिश्यते तथा त्वमाचर ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा शरीराङ्गैः स्त्रीपुरुषौ लक्ष्येते तथा प्रत्यक्षादिप्रमाणैः सत्यं लक्ष्यते। तेन सत्येन विद्वांसो यथा प्राप्तव्यमार्द्रीभावं प्राप्नुयुस्तथेतरे राजप्रजास्थाः स्त्रीपुरुषा विद्यया विनयं प्राप्य सुखमन्विच्छन्तु ॥२९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्याप्रमाणे शरीरावरून स्री व पुरुष ओळखले जातात. त्याप्रमाणे प्रत्यक्ष प्रमाणांनी सत्य ओळखले जाते. त्या सत्याला जाणून विद्वान लोक जसे नम्र असतात, तसे राजा व प्रजा यांच्या स्री-पुरुषांनी विद्येने नम्रतायुक्त बनावे व सुख शोधावे.