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यद॑स्याऽअꣳहु॒भेद्याः॑ कृ॒धु स्थू॒लमु॒पात॑सत्। मु॒ष्काविद॑स्याऽएजतो गोश॒फे श॑कु॒लावि॑व ॥२८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। अ॒स्याः॒। अ॒ꣳहु॒भेद्या॒ऽइत्य॑ꣳहु॒ऽभेद्याः॑। कृ॒धु। स्थू॒लम्। उ॒पात॑स॒दित्यु॑प॒ऽअत॑सत्। मु॒ष्कौ। इत्। अ॒स्याः॒। ए॒ज॒तः॒। गो॒श॒फ इति॑ गोऽश॒फे। श॒कु॒लावि॒वेति॑ शकु॒लौऽइ॑व ॥२८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:28


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो राजा वा राजपुरुष (अस्याः) इस (अंहुभेद्याः) अपराध का विनाश करनेवाली प्रजा के (कृधु) थोड़े और (स्थूलम्) बहुत कर्म को (उपातसत्) सुशोभित करें, वे दोनों (अस्याः) इसको (एजतः) कर्म कराते हैं और वे आप (गोशफे) गौ के खुर से भूमि में हुए गढ़ेले में (शकुलाविव) छोटी दो मछलियों के समान (मुष्कौ, इत्) प्रजा से पाये हुए कर को चोरते हुए कंपते हैं ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे एक-दूसरे से प्रीति रखनेवाली मछली छोटी ताल तलैया में निरन्तर बसती है, वैसे राजा और राजपुरुष थोड़े भी कर के लाभ में न्यायपूर्वक प्रीति के साथ वर्त्तें और यदि दुःख को दूर करनेवाली प्रजा के थोड़े बहुत उत्तम काम की प्रंशसा करें तो वे दोनों प्रजाजनों को प्रसन्न कर अपने में उनसे प्रीति करावें ॥२८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यत्) यः (अस्याः) प्रजायाः (अंहुभेद्या) अंहुमपराधं या भिनत्ति तस्याः (कृधु) ह्रस्वम्। कृध्विति ह्रस्वनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.२) (स्थूलम्) महत्कर्म (उपातसत्) उपभूषयेत् (मुष्कौ) मूषकौ (इत्) एव (अस्याः) (एजतः) कम्पयतः (गोशफे) गोखुरचिह्ने (शकुलाविव) ह्रस्वौ मत्स्याविव ॥२८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यद्यो राजा राजपुरुषश्चास्या अंहुभेद्याः कृधु स्थूलं कर्मोपातसत्तावस्या एजतो गोशफे शकुलाविव मुष्काविदेजतः ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा प्रीतिमन्तौ मत्स्यावल्पेऽपि जलाशये निवसतस्तथा राजराजपुरुषावल्पेऽपि करलाभे न्यायेन प्रीत्या वर्त्तेयाताम्। यदि दुःखच्छेदिकायाः प्रजायाः स्वल्पमहदुत्तमं कर्म प्रशंसयेतां तर्हि तौ प्रजा उपरक्ताः कृत्वा स्वविषये प्रीतिं कारयेताम् ॥२८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. परस्परांवर प्रेम करणारे दोन मासे जसे लहान तलावात राहतात तसे राजा व राजपुरुष यांनी कर कमी व लाभ कमी होत असेल तरीही प्रजेबरोबर न्यायाने व प्रेमाने वागावे. दुःख दूर करणाऱ्या प्रजेने थोडे-बहुत उत्तम काम केल्यास त्यांची प्रशंसा करावी व त्या दोघांनी (राजा व राजपुरुष) प्रजेला प्रसन्न करून परस्पर प्रीती वाढवावी.