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द्यौरा॑सीत्पू॒र्वचि॑त्ति॒रश्व॑ऽआसीद् बृ॒हद्वयः॑। अवि॑रासीत्पिलिप्पि॒ला रात्रि॑रासीत्पिशङ्गि॒ला ॥१२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द्यौः। आ॒सी॒त्। पू॒र्वचि॑त्ति॒रिति॑ पू॒र्वऽचि॑त्तिः। अश्वः॑। आ॒सी॒त्। बृ॒हत्। वयः॑। अविः॑। आ॒सी॒त्। पि॒लि॒प्पि॒ला। रात्रिः॑। आ॒सी॒त्। पि॒श॒ङ्गि॒ला ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पिछले प्रश्नों के उत्तरों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जानने की इच्छा करनेवालो ! (पूर्वचित्तिः) प्रथम स्मृति का विषय (द्यौः) दिव्यगुण देने हारी वर्षा (आसीत्) है, (बृहत्) बड़े (वयः) उड़ने हारे (अश्वः) मार्गों को व्याप्त होनेवाले पक्षी के तुल्य अग्नि (आसीत्) है, (पिलिप्पिला) वर्षा से पिलिपिली चिकनी शोभायमान (अविः) अन्नादि से रक्षा आदि उत्तम गुण प्रगट करनेवाली पृथिवी (आसीत्) है और (पिशङ्गिला) प्रकाशरूप को निगलने अर्थात् अन्धकार करने हारी (रात्रिः) रात (आसीत्) है, यह तुम जानो ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - हवन और सूर्य रूपादि अग्नि के ताप से सब गुणों से युक्त अन्नादि से संसार की स्थिति करनेवाली वर्षा होती है। उस वर्षा से सब ओषधि आदि उत्तम पदार्थ युक्त पृथिवी होती और सूर्य्य रूप अग्नि से ही प्राणियों के विश्राम के लिये रात्रि होती है ॥१२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्राक्प्रश्नोत्तराण्याह ॥

अन्वय:

(द्यौः) दिव्यगुणप्रदा वृष्टिः। द्यौर्वै वृष्टिः। (शत०१३.२.६.१६) (आसीत्) अस्ति (पूर्वचित्तिः) प्रथमस्मृतिविषया (अश्वः) योऽश्नुते मार्गान् सोऽग्निः (आसीत्) (बृहत्) महत् (वयः) यो वेति गच्छति सः (अविः) रक्षणादिकर्त्री पृथिवी (आसीत्) (पिलिप्पिला) (रात्रिः) (आसीत्) (पिशङ्गिला) ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासवः ! पूर्वचित्तिर्द्यौरासीद्, बृहद्वयोऽश्व आसीत्, पिलिप्पिलाऽविरासीत्, पिशङ्गिला रात्रिरासीदिति यूयं बुध्यध्वम् ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - हवनसूर्यरूपाद्यग्नितापेन सर्वगुणसंपन्नाऽन्नादिना संसारस्थितिनिमित्ता वृष्टिर्जायते, ततः सर्वरत्नाढ्या भूर्भवति। सूर्याग्निनिमित्तेनैव प्राणिनां शयनाय रात्रिर्जायते ॥१२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हवन व सूर्यरूपी अग्नीच्या योगे उत्तम अन्न उत्पन्न करणारी व लक्षात ठेवण्याजोगी वस्तू म्हणजे वृष्टी होय. उडणाऱ्या पक्षाप्रमाणे अग्नी हा सर्वत्र उपस्थित असतो. पर्जन्यामुळेच पृथ्वीवर उत्तम पदार्थ निर्माण होतात, ती पृथ्वी नरम किंवा मऊ असते व सूर्यरूपी अग्नीला गिळण्यासाठी किंवा प्राण्यांना विश्रांतीसाठी रात्र निर्माण होते.