वांछित मन्त्र चुनें

हि॒ङ्का॒राय॒ स्वाहा॒ हिङ्कृ॑ताय॒ स्वाहा॒ क्रन्द॑ते॒ स्वाहा॑ऽवक्र॒न्दाय॒ स्वाहा॒ प्रोथ॑ते॒ स्वाहा॑ प्रप्रो॒थाय॒ स्वाहा॑ ग॒न्धाय॒ स्वाहा॑ घ्रा॒ताय॒ स्वाहा॒ निवि॑ष्टाय॒ स्वाहोप॑विष्टाय॒ स्वाहा॒ सन्दि॑ताय॒ स्वाहा॒ वल्ग॑ते॒ स्वाहासी॑नाय॒ स्वाहा॒ शया॑नाय॒ स्वाहा॒ स्वप॑ते॒ स्वाहा॒ जाग्र॑ते॒ स्वाहा॒ कूज॑ते॒ स्वाहा॒ प्रबु॑द्धाय॒ स्वाहा॑ वि॒जृम्भ॑माणाय॒ स्वाहा॒ विचृ॑ताय॒ स्वाहा॒ सꣳहा॑नाय॒ स्वाहोप॑स्थिताय॒ स्वाहाऽय॑नाय॒ स्वाहा॒ प्राय॑णाय॒ स्वाहा॑ ॥७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

हिं॒का॒रायेति॑ हिम्ऽका॒राय॑। स्वाहा॑। हिं॑कृता॒येति॒ हिम्ऽकृ॑ताय। स्वाहा॑। क्रन्द॑ते। स्वाहा॑। अ॒व॒क॒न्दायेत्य॑वऽक्र॒न्दाय॑। स्वाहा॑। प्रोथ॑ते। स्वाहा॑। प्र॒प्रो॒थायेति॑ प्रऽप्रो॒थाय॑। स्वाहा॑। ग॒न्धाय॑। स्वाहा॑। घ्रा॒ताय॑। स्वाहा॑। निवि॑ष्टायेति॒ निऽवि॑ष्टाय। स्वाहा॑। उप॑विष्टा॒येत्युप॑ऽविष्टाय। स्वाहा॑। सन्दि॑ता॒येति॒ सम्ऽदि॑ताय। स्वाहा॑। वल्ग॑ते। स्वाहा॑। आसी॑नाय। स्वाहा॑। शया॑नाय। स्वाहा॑। स्वप॑ते। स्वाहा॑। जाग्र॑ते। स्वाहा॑। कूज॑ते। स्वाहा॑। प्रबु॑द्धायेति॒ प्रऽबु॑द्धाय। स्वाहा॑। वि॒जृम्भ॑माणा॒येति॑ वि॒ऽजृम्भ॑माणाय। स्वाहा॑। विचृ॑ता॒येति॒ विऽचृ॑ताय। स्वाहा॑। सꣳहाना॒येति॒ सम्ऽहा॑नाय। स्वाहा॑। उप॑स्थिता॒येत्युप॑ऽस्थिताय। स्वाहा॑। आय॑ना॒येत्या॒ऽअय॑नाय। स्वाहा॑। प्राय॑णाय। प्राय॑ना॒येति॑ प्र॒ऽअ॑यनाय। स्वाहा॑ ॥७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:22» मन्त्र:7


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को जगत् कैसे शुद्ध करना चहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जिन मनुष्यों ने (हिंकाराय) जो हिं ऐसा शब्द करता है, उसके लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (हिंकृताय) जिसने हिं शब्द किया उसके लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (क्रन्दते) बुलाते वा रोते हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (अवक्रन्दाय) नीचे होकर बुलानेवाले के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (प्रोथते) सब कर्मों में परिपूर्ण के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (प्रप्रोथाय) अत्यन्त पूर्ण के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (गन्धाय) सुगन्धित के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (घ्राताय) जो सूँघा गया उसके लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (निविष्टाय) जो निरन्तर प्रवेश करता बैठता है, उसके लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (उपविष्टाय) जो बैठता उसके लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (संदिताय) जो भलीभाँति दिया जाता उसके लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (वल्गते) जाते हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (आसीनाय) बैठे हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (शयानाय) सोते हुए के लिए (स्वाहा) उत्तम क्रिया (स्वपते) नींद जिस को प्राप्त हुई उसके लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (जाग्रते) जागते हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (कूजते) कूजते हुए के लिए (स्वाहा) उत्तम क्रिया (प्रबुद्धाय) उत्तम ज्ञानवाले के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (विजृम्भमाणाय) अच्छे प्रकार जँभाई लेने के लिए (स्वाहा) उत्तम क्रिया (विचृताय) विशेष रचना करनेवाले के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (संहानाय) जिससे संघात पदार्थों का समूह किया जाता, उसके लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (उपस्थिताय) समीप स्थित हुए के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (आयनाय) अच्छे प्रकार विशेष ज्ञान के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया तथा (प्रायणाय) पहुँचाने हारे के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया की, उन मनुष्यों को दुःख छूट के सुख प्राप्त होते हैं ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों से अग्निहोत्र आदि यज्ञ में जितना होम किया जाता है, उतना सब प्राणियों के लिये सुख करनेवाला होता है ॥७ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैर्जगत् कथं शोधनीयमित्याह ॥

अन्वय:

(हिंकाराय) यो हिं करोति तस्मै (स्वाहा) (हिंकृताय) हिं कृतं येन तस्मै (स्वाहा) (क्रन्दते) आह्वानं रोदनं वा कुर्वते (स्वाहा) (अवक्रन्दाय) नीचैः कृताह्वानाय (स्वाहा) (प्रोथते) पर्याप्ताय (स्वाहा) (प्रप्रोथाय) अत्यन्तं पर्याप्ताय (स्वाहा) (गन्धाय) (स्वाहा) (घ्राताय) योऽघ्रायि तस्मै (स्वाहा) (निविष्टाय) यो निविशते तस्मै (स्वाहा) (उपविष्टाय) य उपविशति तस्मै (स्वाहा) (संदिताय) यः सम्यग् दीयते खण्ड्यते तस्मै (स्वाहा) (वल्गते) गच्छते (स्वाहा) (आसीनाय) स्थिताय (स्वाहा) (शयानाय) शेते तस्मै (स्वाहा) (स्वपते) प्राप्तसुषुप्तये (स्वाहा) (जाग्रते) (स्वाहा) (कूजते) अप्रकटशब्दोच्चारकाय (स्वाहा) (प्रबुद्धाय) प्रकृष्टज्ञानवते (स्वाहा) (विजृम्भमाणाय) विशेषेणाङ्गविनामकाय (स्वाहा) (विचृताय) ग्रन्थकाय (स्वाहा) (संहानाय) संहन्यते यस्मिंस्तस्मै (स्वाहा) (उपस्थिताय) प्राप्तसमीपत्वाय (स्वाहा) (आयनाय) समन्ताद् विज्ञानाय (स्वाहा) (प्रायणाय) (स्वाहा) ॥७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यैर्मनुष्यैर्हिंकाराय स्वाहा हिंकृताय स्वाहा क्रन्दते स्वाहाऽवक्रन्दाय स्वाहा प्रोथते स्वाहा प्रप्रोथाय स्वाहा गन्धाय स्वाहा घ्राताय स्वाहा निविष्टाय स्वाहोपविष्टाय स्वाहा संदिताय स्वाहा वल्गते स्वाहाऽऽसीनाय स्वाहा शयानाय स्वाहा स्वपते स्वाहा जाग्रते स्वाहा कूजते स्वाहा प्रबुद्धाय स्वाहा विजृम्भमाणाय स्वाहा विचृताय स्वाहा संहानाय स्वाहोपस्थिताय स्वाहाऽयनाय स्वाहा प्रायणाय स्वाहा क्रियन्ते तैर्दुःखानि वियोज्य सुखानि लभ्यन्ते ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरग्निहोत्रादियज्ञे यावद्धूयते तावत्सर्वं प्राणिनां सुखकारकं भवति ॥७ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसे अग्नीहोत्रात जितक्या आहुती देतात तितक्या त्या सर्व प्राण्यांना सुखदायक ठरतात.