अ॒ग्नये॒ स्वाहा॒ सोमा॑य॒ स्वाहा॒पां मोदा॑य॒ स्वाहा॑ सवि॒त्रे स्वाहा॑ वा॒यवे॒ स्वाहा॒ विष्ण॑वे॒ स्वाहेन्द्रा॑य॒ स्वाहा॒ बृह॒स्पत॑ये॒ स्वाहा॑ मि॒त्राय॒ स्वाहा॒ वरु॑णाय॒ स्वाहा॑ ॥६ ॥
अ॒ग्नये॑। स्वाहा॑। सोमा॑य। स्वाहा॑। अ॒पाम्। मोदा॑य। स्वाहा। स॒वि॒त्रे। स्वाहा॑। वा॒यवे॑। स्वाहा॑। वि॒ष्णवे॑। स्वाहा॑। इन्द्रा॑य। स्वाहा॑। बृह॒स्पत॑ये। स्वाहा॑। वरु॑णाय। स्वाहा॑ ॥६ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्य कैसे अपना वर्त्ताव वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्याः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥
(अग्नये) पावकाय (स्वाहा) श्रेष्ठया क्रियया (सोमाय) ओषधिगणशोधनाय (स्वाहा) (अपाम्) जलानाम् (मोदाय) आनन्दाय (स्वाहा) सुखप्रापिका क्रिया (सवित्रे) सूर्याय (स्वाहा) (वायवे) (स्वाहा) (विष्णवे) व्यापकाय विद्युद्रूपाय (स्वाहा) (इन्द्राय) जीवाय (स्वाहा) (बृहस्पतये) बृहतां पालकाय (स्वाहा) (मित्राय) सख्ये (स्वाहा) सत्क्रिया (वरुणाय) श्रेष्ठाय (स्वाहा) उत्तमक्रिया ॥६ ॥