आयु॑र्य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॑ प्रा॒णो य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॑ऽपा॒नो य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॑ व्या॒नो य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहो॑दा॒नो य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॒ समा॒नो य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॒ चक्षु॑र्य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॒ श्रोत्रं॑ य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॒ वाग्य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॒ मनो॑ य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॒ऽऽत्मा य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॑ ब्र॒ह्मा य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॒ ज्योति॑र्य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॒ स्व᳖र्य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॑ पृ॒ष्ठं य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॑ य॒ज्ञो य॒ज्ञेन॑ कल्पता॒ स्वाहा॑ ॥३३ ॥
आयुः॑। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। प्रा॒णः। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। अ॒पा॒न इत्य॑पऽआ॒नः। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। व्या॒न इति॑ विऽआ॒नः। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। उ॒दा॒न इत्यु॑त्ऽआ॒नः। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। स॒मा॒न इति॑ सम्ऽआ॒नः। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। चक्षुः॑। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। श्रोत्र॑म्। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। वाग्। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। मनः॑। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। आ॒त्मा। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। ब्र॒ह्मा। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। ज्योतिः॑। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। स्व᳖रिति॒ स्वः᳖। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। पृ॒ष्ठम्। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑। य॒ज्ञः। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒ता॒म्। स्वाहा॑ ॥३३ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को अपना सर्वस्व अर्थात् सब पदार्थसमूह किसके अनुष्ठान के लिये भलीभाँति अर्पण करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यैः स्वकीयं सर्वस्वं कस्यानुष्ठानाय समर्प्पणीयमित्याह ॥
(आयुः) एति जीवनं येन तत् (यज्ञेन) परमेश्वरस्य विदुषां च सत्करणेन सङ्गतेन कर्मणा विद्यादिदानेन सह (कल्पताम्) समर्प्पयतु (स्वाहा) सत्क्रियया (प्राणः) जीवनमूलो वायुः (यज्ञेन) योगाभ्यासादिना (कल्पताम्) (स्वाहा) (अपानः) अपानयति दुःखं येन सः (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (व्यानः) सर्वसंधिषु व्याप्तश्चेष्टानिमित्तः (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (उदानः) उदानिति बलयति येन सः (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (समानः) समानयति रसं येन सः (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (चक्षुः) नेत्रम् (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (श्रोत्रम्) ज्ञानेन्द्रियाणामुपलक्षणम् (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (वाक्) कर्मेन्द्रियाणामुपलक्षणम् (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (मनः) अन्तःकरणम् (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (आत्मा) जीवः (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (ब्रह्मा) चतुर्वेदवित् (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (ज्योतिः) ज्ञानप्रकाशः (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (स्वः) सुखम् (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (पृष्ठम्) प्रश्नं शिष्टं च (यज्ञेन) (कल्पताम्) (स्वाहा) (यज्ञः) व्यापकः परमेश्वरः। ‘यज्ञो वै विष्णुः’ इति शतपथे (यज्ञेन) परमात्मना (कल्पताम्) (स्वाहा) ॥३३ ॥