मध॑वे॒ स्वाहा॒ माध॑वाय॒ स्वाहा॑ शु॒क्राय॒ स्वाहा॒ शुच॑ये॒ स्वाहा॒ नभ॑से॒ स्वाहा॑ नभ॒स्या᳖य॒ स्वाहे॒षाय॒ स्वाहो॒र्जाय॒ स्वाहा॒ सह॑से॒ स्वाहा॑ सह॒स्या᳖य॒ स्वाहा॒ तप॑से॒ स्वाहा॑ तप॒स्या᳖य॒ स्वाहा॑हसस्प॒तये॒ स्वाहा॑ ॥३१ ॥
मध॑वे। स्वाहा॑। माध॑वाय। स्वाहा॑। शु॒क्राय॑। स्वाहा॑। शुच॑ये। स्वाहा॑। नभ॑से। स्वाहा॑। न॒भ॒स्या᳖य। स्वाहा॑। इ॒षाय॑। स्वाहा॑। ऊ॒र्जाय॑। स्वाहा॑। सह॑से। स्वाहा॑। सह॒स्या᳖य। स्वाहा। तप॑से। स्वाहा॑। त॒प॒स्या᳖य। स्वाहा॑। अ॒ꣳह॒सः॒प॒तये॑। स्वाहा॑ ॥३१ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
(मधवे) मधुरादिगुणोत्पादकाय चैत्राय (स्वाहा) (माधवाय) वैशाखाय (स्वाहा) (शुक्राय) शुद्धिकराय ज्येष्ठाय (स्वाहा) (शुचये) पवित्रकरायाऽऽषाढाय (स्वाहा) (नभसे) जलवर्षकाय श्रावणाय (स्वाहा) (नभस्याय) नभसि भवाय भाद्राय (स्वाहा) (इषाय) अन्नोत्पादकायाऽऽश्विनाय (स्वाहा) (ऊर्जाय) बलान्नोत्पादकाय कार्त्तिकाय (स्वाहा) (सहसे) बलप्रदाय मार्गशीर्षाय (स्वाहा) (सहस्याय) सहसि साधवे पौषाय (स्वाहा) (तपसे) तप उत्पादकाय माघाय (स्वाहा) (तपस्याय) तपसि साधवे फाल्गुनाय (स्वाहा) (अंहसः) श्लिष्टस्य (पतये) पालकाय (स्वाहा) ॥३१ ॥