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वाता॑य॒ स्वाहा॑ धू॒माय॒ स्वाहा॒भ्राय॒ स्वाहा॑ मे॒घाय॒ स्वाहा॑ वि॒द्योत॑मानाय॒ स्वाहा॑ स्त॒नय॑ते॒ स्वाहा॑व॒स्फूर्ज॑ते॒ स्वाहा॒ वर्ष॑ते॒ स्वाहा॑व॒वर्ष॑ते॒ स्वाहो॒ग्रं वर्ष॑ते॒ स्वाहा॑ शी॒घ्रं वर्ष॑ते॒ स्वाहो॑द्गृह्ण॒ते स्वाहोद्गृ॑हीताय॒ स्वाहा॑ प्रुष्ण॒ते स्वाहा॑ शीकाय॒ते स्वाहा॒ प्रुष्वा॑भ्यः॒ स्वाहा॑ ह्रा॒दुनी॑भ्यः॒ स्वाहा॑ नीहा॒राय॒ स्वाहा॑ ॥२६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वाता॑य। स्वाहा॑। धू॒माय॑। स्वाहा॑। अ॒भ्राय॑। स्वाहा॑। मे॒घाय॑। स्वाहा॑। वि॒द्योत॑माना॒येति॑ वि॒ऽद्योत॑मानाय। स्वाहा॑। स्त॒नय॑ते। स्वाहा॑। अ॒व॒स्फूर्ज॑त॒ इत्य॑व॒ऽस्फूर्ज॑ते। स्वाहा॑। वर्ष॑ते। स्वाहा॑। अ॒व॒वर्ष॑त॒ इत्य॑व॒ऽवर्ष॑ते। स्वाहा॑। उ॒ग्रम्। वर्ष॑ते। स्वाहा॑। शी॒घ्रम्। वर्ष॑ते। स्वाहा॑। उ॒द्गृ॒ह्ण॒त इत्यु॑त्ऽगृह्ण॒ते। स्वाहा॑। उद्गृ॑हीता॒येत्युत्ऽगृ॑हीताय। स्वाहा॑। प्रु॒ष्ण॒ते। स्वाहा॑। शी॒का॒य॒ते। स्वाहा॑। प्रुष्वा॑भ्यः। स्वाहा॑। ह्रा॒दुनी॑भ्यः। स्वाहा॑। नी॒हा॒राय॑। स्वाहा॑ ॥२६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:22» मन्त्र:26


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जिन मनुष्यों ने (वाताय) जो बहता है, उस पवन के लिये (स्वाहा) उस को शुद्ध करनेवाली यज्ञक्रिया (धूमाय) धूम के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (अभ्राय) मेघ के कारण के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (मेघाय) मेघ के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (विद्योतमानाय) बिजुली से प्रवृत्त हुए सघन बद्दल के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (स्तनयते) उत्तम शब्द करती हुई बिजुली के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (अवस्फूर्जते) एक-दूसरे के घिसने से वज्र के समान नीचे को चोट करते हुए विद्युत् के लिये (स्वाहा) शुद्ध करने हारी यज्ञक्रिया (वर्षते) जो बद्दल वर्षता है, उसके लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (अववर्षते) मिलावट से तले ऊपर हुए बद्दलों में जो नीचेवाला है, उस बद्दल के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (उग्रम्) अतितीक्ष्णता से (वर्षते) वर्षते हुए बद्दल के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (शीघ्रम्) शीघ्र लपट-झपट से (वर्षते) वर्षते हुए बद्दल के लिये (स्वाहा) उक्त क्रिया (उद्गृह्णते) ऊपर से ऊपर बद्दलों के ग्रहण करनेवाले बद्दल के लिये (स्वाहा) उक्त क्रिया (उद्गृहीताय) जिसने ऊपर से ऊपर जल ग्रहण किया उस बद्दल के लिये (स्वाहा) शुद्धि करनेवाली यज्ञक्रिया (प्रुष्णते) पुष्टि करते हुए मेघ के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (शीकायते) जो सींचता अर्थात् ठहर-ठहर के वर्षता, उस मेघ के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (प्रुष्वाभ्यः) जो पूर्ण घनघोर वर्षा करते हैं, उन मेघों के अवयवों के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (ह्रादुनीभ्यः) अव्यक्त गड़गड़ शब्द करते हुए बद्दलों के लिये (स्वाहा) शुद्धि करनेवाली यज्ञक्रिया और (नीहाराय) कुहर के लिये (स्वाहा) उस की शुद्धि करनेवाली यज्ञक्रिया की है, वे संसार के प्राणपियारे होते हैं ॥२६ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य यथाविधि अग्निहोत्र आदि यज्ञों को करते हैं, वे पवन आदि पदार्थों के शोधनेहारे होकर सब का हित करनेवाले हाते हैं ॥२६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(वाताय) यो वाति तस्मै (स्वाहा) (धूमाय) (स्वाहा) (अभ्राय) मेघनिमित्ताय (स्वाहा) (मेघाय) यो मेहति सिञ्चति तस्मै (स्वाहा) (विद्योतमानाय) विद्युतः प्रवर्त्तकाय (स्वाहा) (स्तनयते) दिव्यं शब्दं कुर्वते (स्वाहा) (अवस्फूर्जते) अधो वज्रवद् घातं कुर्वते (स्वाहा) (वर्षते) यो वर्षति तस्मै (स्वाहा) (अववर्षते) (स्वाहा) (उग्रम्) तीव्रम् (वर्षते) (स्वाहा) (शीघ्रम्) तूर्णम् (वर्षते) (स्वाहा) (उद्गृह्णते) य ऊर्ध्वं गृह्णाति तस्मै (स्वाहा) (उद्गृहीताय) ऊर्ध्वं गृहीतं जलं येन तस्मै (स्वाहा) (प्रुष्णते) पुष्टिं पूरयते (स्वाहा) (शीकायते) यः शीकं सेचनं करोति तस्मै (स्वाहा) (प्रुष्वाभ्यः) पूर्णाभ्यः (स्वाहा) (ह्रादुनीभ्यः) अव्यक्तं शब्दं कुर्वतीभ्यः (स्वाहा) (नीहाराय) कुहकाय (स्वाहा) ॥२६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यैर्मनुष्यैर्वाताय स्वाहा धूमाय स्वाहाऽभ्राय स्वाहा मेघाय स्वाहा विद्योतमानाय स्वाहा स्तनयते स्वाहाऽवस्फूर्जते स्वाहा वर्षते स्वाहाऽववर्षते स्वाहोग्रं वर्षते स्वाहा शीघ्रं वर्षते स्वाहोद्गृह्णते स्वाहोद्गृहीताय स्वाहा प्रुष्णते स्वाहा शीकायते स्वाहा प्रुष्वाभ्यः स्वाहा ह्रादुनीभ्यः स्वाहा नीहाराय स्वाहा च प्रयुज्यते ते प्राणप्रिया जायन्ते ॥२६ ॥
भावार्थभाषाः - ये यथाविध्यग्निहोत्रादीन् कुर्वन्ति ते वाय्वादिशोधका भूत्वा सर्वेषां हितकरा भवन्ति ॥२६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे यथायोग्य अग्निहोत्र इत्यादी यज्ञ करतात. ती वायू, मेघ, विद्युत इत्यादी शुद्ध करून सर्वांचे हित करतात.