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प्राच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॒ दक्षि॑णायै दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॑ प्र॒तीच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहोदी॑च्यै दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहो॒र्ध्वायै॑ दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहाऽवा॑च्यै दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॑ ॥२४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्राच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। दक्षि॑णायै। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। प्र॒तीच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। उदी॑च्यै। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। ऊ॒र्ध्वायै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। अवा॑च्यै। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑ ॥२४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:22» मन्त्र:24


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर किसलिये होम करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जिन विद्वानों ने (प्राच्यै) जो प्रथम प्राप्त होती है अर्थात् प्रथम सूर्य मण्डल का संयोग करती उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रविद्यायुक्त वाणी (अर्वाच्यै) जो नीचे से सूर्यमण्डल को प्राप्त अर्थात् जब विषुमती रेखा से उत्तर का सूर्य नीचे-नीचे गिरता है, उस नीचे की (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी (दक्षिणायै) जो पूर्वमुखवाले पुरुष के दाहिनी बाँह के निकट है, उस दक्षिण (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) उक्त वाणी (अर्वाच्यै) निम्न है, उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) उक्त वाणी (प्रतीच्यै) जो सूर्यमण्डल के प्रतिमुख अर्थात् लौटने के समय में प्राप्त और पूर्वमुखवाले पुरुष के पीठ पीछे होती उस पश्चिम (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी (अर्वाच्यै) पश्चिम के नीचे जो (दिशे) दिशा है, उस के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी (उदीच्यै) जो पूर्वाभिमुख पुरुष के वामभाग को प्राप्त होती, उस उत्तम (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी (अर्वाच्यै) पृथिवी गोल में जो उत्तर दिशा के तले दिशा है, उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी (ऊर्ध्वायै) जो ऊपर को वर्त्तमान है, उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी (अर्वाच्यै) जो विरुद्ध प्राप्त होती ऊपरवाली दिशा के नीचे अर्थात् कभी पूर्व गिनी जाती, कभी उत्तर, कभी दक्षिण, कभी पश्चिम मानी जाती है, उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी और (अवाच्यै) जो सबसे नीचे वर्त्तमान उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रविचारयुक्त वाणी तथा (अर्वाच्यै) पृथिवी गोल में जो उक्त प्रत्येक कोण दिशाओं के तले की दिशा है, उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रविद्यायुक्त वाणी विधान की, वे सब ओर कुशली अर्थात् आनन्दी होते हैं ॥२४ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! चार मुख्य दिशा और चार उपदिशा अर्थात् कोण दिशा भी वर्त्तमान हैं। ऐसे ऊपर और नीचे की दिशा भी वर्त्तमान हैं। वे मिल कर सब दश होती हैं, यह जानना चाहिये और एक क्रम से निश्चय नहीं की हुई तथा अपनी-अपनी कल्पना में समर्थ भी है, उनको उन-उनके अर्थ में समर्थन करने की यह रीति है कि जहाँ मनुष्य आप स्थित हो, उस देश को लेके सब की कल्पना होती है, इसको जानो ॥२४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः किमर्थो होमः कर्त्तव्य इत्याह ॥

अन्वय:

(प्राच्यै) या प्राञ्चति प्रथमादित्यसंयोगात्तस्यै (दिशे) (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रविद्यायुक्ता वाक् (अर्वाच्यै) यार्वागधोञ्चति तस्यै (दिशे) (स्वाहा) (दक्षिणायै) या पूर्वमुखस्य पुरुषस्य दक्षिणबाहुसन्निधौ वर्त्तते तस्यै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) अधस्ताद्वर्त्तमानायै (दिशे) (स्वाहा) (प्रतीच्यै) या प्रत्यक् अञ्चति पूर्वमुखस्थितपुरुषस्य पृष्ठभागा तस्यै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) (दिशे) (स्वाहा) (उदीच्यै) योदक्पूर्वाभिमुखस्य जनस्य वामभागमञ्चति तस्यै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) (दिशे) (स्वाहा) (ऊर्ध्वायै) ऊर्ध्ववर्त्तमानायै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) या अवविरुद्धमञ्चति तस्यै उपदिशे (दिशे) (स्वाहा) (अवाच्यै) (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) (दिशे) (स्वाहा) ॥२४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यैर्विद्वद्भिः प्राच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहा दक्षिणायै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहा प्रतीच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहोदीच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहोर्ध्वायै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहाऽवाच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहा च विधीयते ते सर्वतः कुशलिनो भवन्ति ॥२४ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याश्चतस्रो मुख्या दिशः सन्ति तथा चतस्र उपदिशोऽपि वर्त्तन्त एवमूर्ध्वाऽर्वाची च दिशौ वर्त्तेते ता मिलित्वा दश जायन्त इति वेद्यम्। अनवस्थिता इमा विभ्व्यश्च सन्ति, यत्र स्वयं स्थितो भवेत्तद्देशमारभ्य सर्वासां कल्पना भवतीति विजानीत ॥२४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! चार मुख्य दिशा, चार उपदिशा उर्ध्व (वर) अधर (खाली) अशा सर्व मिळून दहा दिशा आहेत, हे जाणले पाहिजे. त्या एकाच क्रमाने निश्चित करता येत नाहीत. त्यांना आपल्याला कल्पनेने जाणावे. त्यांना समजण्याची हीच पद्धत आहे. जेथे मनुष्य स्थित असेल त्या स्थानापासूनचा सर्व दिशांची कल्पना करता येते.