वांछित मन्त्र चुनें

प्रा॒णाय॒ स्वाहा॑ऽपा॒नाय॒ स्वाहा॑ व्या॒नाय॒ स्वाहा॒ चक्षु॑षे॒ स्वाहा॒ श्रोत्रा॑य॒ स्वाहा॑ वा॒चे स्वाहा॒ मन॑से॒ स्वाहा॑ ॥२३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रा॒णाय॑। स्वाहा॑। अ॒पा॒नाय॑। स्वाहा॑। व्या॒नायेति॑ विऽआ॒नाय॑। स्वाहा॑। चक्षु॑षे। स्वाहा॑। श्रोत्रा॑य। स्वाहा॑। वा॒चे। स्वाहा॑। मन॑से। स्वाहा॑ ॥२३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:22» मन्त्र:23


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर किसलिये होम का विधान करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जिन मनुष्यों ने (प्राणाय) जो पवन भीतर से बाहर निकलता है, उसके लिये (स्वाहा) योगविद्यायुक्त क्रिया (अपानाय) जो बाहर से भीतर को जाता है, उस पवन के लिये (स्वाहा) वैद्यकविद्यायुक्तक्रिया (व्यानाय) जो विविध प्रकार के अङ्गों में व्याप्त होता है, उस पवन के लिये (स्वाहा) वैद्यकविद्यायुक्त वाणी (चक्षुषे) जिससे प्राणी देखता है, उस नेत्र इन्द्रिय के लिये (स्वाहा) प्रत्यक्षप्रमाणयुक्त वाणी (श्रोत्राय) जिस से सुनता है, उस कर्णेन्द्रिय के लिये (स्वाहा) शास्त्रज्ञ विद्वान् की उपदेशयुक्त वाणी (वाचे) जिससे बोलता है, उस वाणी के लिये (स्वाहा) सत्यभाषण आदि व्यवहारों से युक्त बोलचाल तथा (मनसे) विचार का निमित्त संकल्प और विकल्पवान् मन के लिये (स्वाहा) विचार से भरी हुई वाणी प्रयोग की जाती अर्थात् भलीभाँति उच्चारण की जाती है, वे विद्वान् होते हैं ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य यज्ञ से शुद्ध किये जल, औषधि, पवन, अन्न, पत्र, पुष्प, फल, रस, कन्द अर्थात् अरबी, आलू, कसेरू, रतालू और शकरकन्द आदि पदार्थों का भोजन करते हैं, वे नीरोग होकर बुद्धि, बल, आरोग्यपन और आयुर्दावाले होते हैं ॥२३ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः किमर्थो होमो विधेय इत्याह ॥

अन्वय:

(प्राणाय) य आभ्यन्तराद् बहिर्निःसरति तस्मै (स्वाहा) योगयुक्ता क्रिया (अपानाय) यो बहिर्देशादाभ्यन्तरं गच्छति तस्मै (स्वाहा) (व्यानाय) यो विविधेष्वङ्गेष्वनिति व्याप्नोति तस्मै (स्वाहा) वैद्यकविद्यायुक्ता वाक् (चक्षुषे) चष्टे पश्यति येन तस्मै (स्वाहा) प्रत्यक्षप्रमाणयुक्ता वाणी (श्रोत्राय) शृणोति येन तस्मै (स्वाहा) आप्तोपदेशयुक्ता गीः (वाचे) वक्ति यया तस्यै (स्वाहा) सत्यभाषणादियुक्ता भारती (मनसे) मनननिमित्ताय संकल्पविकल्पात्मने (स्वाहा) विचारयुक्ता वाणी ॥२३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यैर्मनुष्यैः प्राणाय स्वाहाऽपानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा चक्षुषे स्वाहा श्रोत्राय स्वाहा वाचे स्वाहा मनसे स्वाहा च प्रयुज्यते ते विद्वांसो जायन्ते ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या यज्ञेन शोधितानि जलौषधिवाय्वन्नपत्रपुष्पफलरसकन्दादीन्यश्नन्ति तेऽरोगा भूत्वा प्रज्ञाबलारोग्यायुष्मन्तो जायन्ते ॥२३ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे, प्राण अपान, व्यान, नेत्र, श्रोतृ वाणी व मन इत्यादींचा यथायोग्य वापर करतात ती विद्वान असतात. जी माणसे यज्ञाने शुद्ध झालेले जल, औषधे, वायू, अन्न, पत्र, पुष्प, फळे, रस कंद अर्थात् आर्वी, बटाटे, गाजर, रताळी, बीटरुट इत्यादी पदार्थांचे भोजन करतात ती निरोगी होऊन बुद्धिमान, बलवान, आरोग्यवान व दीर्घायुषी होतात.