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विश्वो॑ दे॒वस्य॑ ने॒तुर्मर्त्तो॑ वुरीत स॒ख्यम्। विश्वो॑ रा॒यऽइ॑षुध्यति द्यु॒म्नं वृ॑णीत पु॒ष्यसे॒ स्वाहा॑ ॥२१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्वः॑। दे॒वस्य॑। ने॒तुः। मर्त्तः॑। बु॒री॒त॒। स॒ख्यम्। विश्वः॑। रा॒ये। इ॒षु॒ध्य॒ति॒। द्यु॒म्नम्। वृ॒णी॒त॒। पु॒ष्यसे॑। स्वाहा॑ ॥२१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:22» मन्त्र:21


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (विश्वः) समस्त (मर्त्तः) मनुष्य (नेतुः) नायक अर्थात् सब व्यवहारों की प्राप्ति कराने हारे (देवस्य) विद्वान् की (सख्यम्) मित्रता को (वुरीत) स्वीकार करें वा जैसे (विश्वः) समस्त मनुष्य (राये) धन के लिये (इषुध्यति) याचना करता अर्थात् मँगनी माँगता वा बाणों को अपने-अपने धनुष् पर धारता है, वैसे (स्वाहा) सत्यक्रिया वा सत्यवाणी से (पुष्यसे) पुष्टि के लिये (द्युम्नम्) धन और यश को (वृणीत) स्वीकार करे ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब मनुष्य विद्वानों के साथ मित्र होकर विद्या और यश का ग्रहण कर धनवान् और कान्तिमान् होकर उत्तम योग्य आहार वा अच्छे मार्ग से पुष्ट हों ॥२१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(विश्वः) सर्वः (देवस्य) विदुषः (नेतुः) नायकस्य (मर्त्तः) मनुष्यः (वुरीत) वृणुयात्। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदं बहुलं छन्दसि [अ०२.४.७३] इति शपो लुक्, लिङ्प्रयोगोऽयम् (सख्यम्) मित्रत्वम् (विश्वः) (राये) धनाय (इषुध्यति) याचते शरान् धरति वा (द्युम्नम्) धनं यशो वा (वृणीत) (पुष्यसे) पुष्टये (स्वाहा) ॥२१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यथा विश्वो मर्तो नेतुर्देवस्य सख्यं वुरीत यथा वा विश्वो मर्त्यो राय इषुध्यति तथा स्वाहा पुष्यसे द्युम्नं वृणीत ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सर्वे मनुष्या विद्वद्भिः सह सुहृदो भूत्वा विद्यां यशश्च गृहीत्वा श्रीमन्तो भूत्वा सुपथ्येन पुष्टाः सन्तु ॥२१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व माणसांनी विद्वानांचे मित्र बनावे व विद्या आणि यश मिळवावे, धन कमवावे व तेजस्वी बनावे. उत्तम योग्य आहार करून पुष्ट व्हावे.