वांछित मन्त्र चुनें

काय॒ स्वाहा॒ कस्मै॒ स्वाहा॑ कत॒मस्मै॒ स्वाहा॒ स्वाहा॒धिमाधी॑ताय॒ स्वाहा॒ मनः॑ प्र॒जाप॑तये॒ स्वाहा॑ चि॒त्तं विज्ञा॑ता॒यादि॑त्यै॒ स्वाहादि॑त्यै म॒ह्यै स्वाहादि॑त्यै सुमृडी॒कायै॒ स्वाहा॒ सर॑स्वत्यै॒ स्वाहा॒ सर॑स्वत्यै पाव॒कायै॒ स्वाहा॒ सर॑स्वत्यै बृह॒त्यै स्वाहा॑ पू॒ष्णे स्वाहा॑ पू॒ष्णे प्र॑प॒थ्या᳖य॒ स्वाहा॑ पू॒ष्णे न॒रन्धि॑षाय॒ स्वाहा॒ त्वष्ट्रे॒ स्वाहा॒ त्वष्ट्रे॑ तु॒रीपा॑य॒ स्वाहा॒ त्वष्ट्रे॑ पुरु॒रूपा॑य॒ स्वाहा॒ विष्ण॑वे॒ स्वाहा॒ विष्ण॑वे निभूय॒पाय॒ स्वाहा॒ विष्ण॑वे शिपिवि॒ष्टाय॒ स्वाहा॑ ॥२० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

काय॑। स्वाहा॑। कस्मै॑। स्वाहा॑। क॒त॒मस्मै॑। स्वाहा॑। स्वाहा॑। आ॒धिमित्या॒ऽधिम्। आधी॑ता॒येत्याऽधी॑ताय। स्वाहा॑। मनः॑। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। स्वाहा॑। चि॒त्तम्। विज्ञा॑ता॒येति॑ विऽज्ञा॑ताय। अदि॑त्यै। स्वाहा॑। अदि॑त्यै। म॒ह्यै। स्वाहा॑। अदि॑त्यै। सु॒मृ॒डी॒काया॒ इति॑ सुऽमृडी॒कायै॑। स्वाहा॑। सर॑स्वत्यै। स्वाहा॑। सर॑स्वत्यै। पा॒व॒कायै॑। स्वाहा॑। सर॑स्वत्यै। बृ॒ह॒त्यै। स्वाहा॑। पू॒ष्णे। स्वाहा॑। पू॒ष्णे। प्र॒प॒थ्या᳖येति॑ प्रऽपथ्या᳖य। स्वाहा॑। पू॒ष्णे। न॒रन्धि॑षाय। स्वाहा॑। त्वष्ट्रे॑। स्वाहा॒। त्वष्ट्रे॑। तु॒रीपा॑य। स्वाहा॑। त्वष्ट्रे॑। पु॒रु॒रूपा॒येति॑ पुरु॒ऽरूपा॑य स्वाहा॑। विष्ण॑वे। स्वाहा॑। विष्ण॑वे। नि॒भू॒य॒पायेति॑ निभूय॒ऽपाय॑। स्वाहा॑। विष्ण॑वे। शि॒पि॒वि॒ष्टायेति॑ शिपि॒ऽवि॒ष्टाय॑। स्वाहा॑ ॥२० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:22» मन्त्र:20


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब किस प्रयोजन के लिये होम करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जिन मनुष्यों ने (काय) सुख साधनेवाले के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (कस्मै) सुखस्वरूप के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (कतमस्मै) बहुतों में जो वर्त्तमान उस के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (आधिम्) जो अच्छे प्रकार पदार्थों को धारण करता, उसको प्राप्त होकर (स्वाहा) सत्यक्रिया (आधीताय) सब ओर से विद्यावृद्धि के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (प्रजापतये) प्रजाजनों की पालना करनेहारे के लिये (मनः) मन की (स्वाहा) सत्यक्रिया (विज्ञाताय) विशेष जाने हुए के लिये (चित्तम्) स्मृति सिद्ध कराने अर्थात् चेत दिलाने हारा चैतन्य मन (अदित्यै) पृथिवी के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (मह्यै) बड़ी (अदित्यै) विनाशरहित वाणी के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (सुमृडीकायै) अच्छा सुख करनेहारी (अदित्यै) माता के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (सरस्वत्यै) नदी के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (पावकायै) पवित्र करनेवाली (सरस्वत्यै) विद्यायुक्त वाणी के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (बृहत्यै) बड़ी (सरस्वत्यै) विद्वानों की वाणी के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (पूष्णे) पुष्टि करनेवाले के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (प्रपथ्याय) उत्तमता से आराम के योग्य भोजन करने तथा (पूष्णे) पुष्टि के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (नरन्धिषाय) जो मनुष्यों को उपदेश देता है, उस (पूष्णे) पुष्टि करनेहारे के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (त्वष्ट्रे) और विद्या-प्रकाश करनेहारे के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (तुरीपाय) नौकाओं के पालने (त्वष्ट्रे) और विद्या-प्रकाश करनेहारे के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (पुरुरूपाय) बहुत रूप और (त्वष्ट्रे) प्रकाश करनेवाले के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (विष्णवे) व्याप्त होनेवाले के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (निभूयपाय) निरन्तर आप रक्षित हो औरों की पालना करनेहारे (विष्णवे) सर्वव्यापक के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया तथा (शिपिविष्टाय) वचन कहते हुए चैतन्य प्राणियों में व्याप्ति से प्रवेश हुए (विष्णवे) व्यापक ईश्वर के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया की, वे कैसे न सुखी हों ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वानों के सुख, पढ़ने, अन्तःकरण के विशेष ज्ञान तथा वाणी और पवन आदि पदार्थों की शुद्धि के लिये यज्ञक्रियाओं को करते हैं, वे सुखी होते हैं ॥२० ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ कस्मै प्रयोजनाय होमः कर्त्तव्य इत्याह ॥

अन्वय:

(काय) सुखसाधकाय विदुषे (स्वाहा) सत्या क्रिया (कस्मै) सुखस्वरूपाय (स्वाहा) (कतस्मै) बहूनां मध्ये वर्त्तमानाय (स्वाहा) (स्वाहा) (आधिम्) यः समन्ताद् दधाति तम् (आधीताय) समन्ताद् विद्यावृद्धये (स्वाहा) (मनः) (प्रजापतये) (स्वाहा) सत्या क्रिया (चित्तम्) स्मृतिसाधकम् (विज्ञाताय) (अदित्यै) पृथिव्यै। अदितिरिति पृथिवीनामसु पठितम् ॥ (निघ०१.१) (स्वाहा) (अदित्यै) नाशरहितायै (मह्यै) महत्यै वाचे (स्वाहा) (अदित्यै) जनन्यै (सुमृडीकायै) सुष्ठु सुखकारिकायै (स्वाहा) (सरस्वत्यै) नद्यै (स्वाहा) (सरस्वत्यै) विद्यायुक्तायै वाचे (पावकायै) पवित्रकर्त्र्यै (स्वाहा) (सरस्वत्यै) विदुषां वाचे (बृहत्यै) महत्यै (स्वाहा) (पूष्णे) पुष्टिकर्त्रे (स्वाहा) (पूष्णे) पुष्टाय (प्रपथ्याय) प्रकर्षेण पथ्यकरणाय (स्वाहा) (पूष्णे) पोषकाय (नरन्धिषाय) यो नरान् दिधेष्ट्युपदिशति तस्मै (स्वाहा) (त्वष्ट्रे) प्रकाशाय। त्विष इतोऽत्त्वम् ॥ (उणा०२.९५) अनेनायं सिद्धः (स्वाहा) (त्वष्ट्रे) विद्याप्रकाशकाय (तुरीपाय) नौकानां पालकाय (स्वाहा) (त्वष्ट्रे) प्रकाशकाय (पुरुरूपाय) बहुरूपाय (स्वाहा) (विष्णवे) व्यापकाय (स्वाहा) (विष्णवे) (निभूयपाय) यो नितरां रक्षितो भूत्वाऽन्यान् पालयति तस्मै (स्वाहा) (विष्णवे) (शिपिविष्टाय) शिपिष्वाक्रोशत्सु प्राणिषु व्याप्त्या प्रविष्टाय (स्वाहा) ॥२० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यैर्मनुष्यैः काय स्वाहा कस्मै स्वाहा कतस्मै स्वाहाऽऽधिं प्राप्य स्वाहाऽऽधीताय स्वाहा प्रजापतये मनः स्वाहा विज्ञाताय चित्तमदित्यै स्वाहा मह्याऽअदित्यै स्वाहा सुमृडीकाया अदित्यै स्वाहा सरस्वत्यै स्वाहा पावकायै सरस्वत्यै स्वाहा बृहत्यै सरस्वत्यै स्वाहा पूष्णे स्वाहा प्रपथ्याय पूष्णे स्वाहा नरन्धिषाय पूष्णे स्वाहा त्वष्ट्रे स्वाहा तुरीपाय त्वष्ट्रे स्वाहा पुरुरूपाय त्वष्ट्रे स्वाहा विष्णवे स्वाहा निभूयपाय विष्णवे स्वाहा शिपिविष्टाय विष्णवे स्वाहा कृतास्ते कथं न सुखिनः स्युः ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वत्सुखाऽध्ययनान्तःकरणविज्ञानवाग्वाय्वादिशुद्धये यज्ञक्रियाः कुर्वन्ति, ते सुखिनो भवन्ति ॥२० ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक विद्वानांचे सुख, अध्ययन, अंतःकरणाचे विशेष ज्ञान, वाणी आणि वायू इत्यादी पदार्थांच्या शुद्धीसाठी यज्ञक्रिया करतात ते सुखी होतात.