बार पढ़ा गया
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब अग्नि के गुणों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (इह) इस संसार में (देवान्) दिव्य भोगों को (आ, सादयात्) प्राप्त करावे, उस (हव्यवाहम्) भोजन करने योग्य पदार्थों की प्राप्ति कराने और (दूतम्) दूत के समान कार्य्यसिद्धि करनेहारे (अग्निम्) अग्नि को (पुरः) आगे (दधे) धरता हूँ और तुम लोगों के प्रति (उप, ब्रुवे) उपदेश करता हूँ कि तुम लोग भी ऐसे ही किया करो ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे अग्नि दिव्य सुखों को देनेवाला है, वैसे पवन आदि पदार्थ भी सुख देने में प्रवर्त्तमान हैं, यह जानना चाहिये ॥१७ ॥
बार पढ़ा गया
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाग्निगुणा उच्यन्ते ॥
अन्वय:
(अग्निम्) वह्निम् (दूतम्) दूतवत् कार्यसाधकम् (पुरः) अग्रतः (दधे) धरामि (हव्यवाहम्) यो हव्यानि अत्तुमर्हाणि वहति प्रापयति तम् (उप) (ब्रुवे) उपदिशामि (देवान्) दिव्यान् भोगान् (आ) समन्तात् (सादयात्) सादयेत् प्रापयेत् (इह) अस्मिन् संसारे ॥१७ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! य इह देवानासादयात्तं हव्यवाहं दूतमग्निं पुरो दधे, युष्मान् प्रत्युपब्रुवे यूयमप्येवं कुरुतेति ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यथाऽग्निर्दिव्यसुखप्रदोऽस्ति तथा वाय्वादयोऽपि वर्त्तन्त इति वेद्यम् ॥१७ ॥
बार पढ़ा गया
मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्याप्रमाणे अग्नी हा दिव्य सुख देतो त्याप्रमाणे वायू इत्यादी पदार्थही सुखकारक असतात हे जाणावे.