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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! मैं जिस (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (हिरण्यपाणिम्) जिसकी स्तुति करने में सूर्य आदि तेज हैं (पदम्) उस पाने योग्य (सवितारम्) समस्त ऐश्वर्य्य की प्राप्ति करानेवाले जगदीश्वर को (उपह्वये) ध्यान के योग से बुलाता हूँ, (सः) वह (चेत्ता) अच्छे ज्ञानस्वरूप होने से सत्य और मिथ्या का जनानेवाला (देवता) उपासना करने योग्य इष्टदेव ही है, यह तुम सब जानो ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि इस मन्त्र से लेके पूर्वोक्त मन्त्र गायत्री जो कि गुरुमन्त्र है, उसी के अर्थ का तात्पर्य है, ऐसा जानें। चेतन स्वरूप परमात्मा की उपासना को छोड़ किसी अन्य जड़ की उपासना कभी न करें, क्योंकि उपासना अर्थात् सेवा किया हुआ जड़ पदार्थ हानि-लाभ कारक और रक्षा करने हारा नहीं होता। इससे चित्तवान् समस्त जीवों का चेतनस्वरूप जगदीश्वर ही की उपासना करनी योग्य है, अन्य जड़ता आदि गुणयुक्त पदार्थ उपास्य नहीं ॥१० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(हिरण्यपाणिम्) हिरण्यानि सूर्य्यादीनि तेजांसि पाणौ स्तवने यस्य तम् (ऊतये) रक्षणाद्याय (सवितारम्) सकलैश्वर्य्यप्रापकम् (उप) (ह्वये) ध्यानयोगेनाह्वये (सः) (चेत्ता) सम्यग्ज्ञानस्वरूपत्वेन सत्याऽसत्यज्ञापकः (देवता) उपासनीय इष्टदेव एव (पदम्) प्राप्तुमर्हम् ॥१० ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यमहमूतये हिरण्यपाणिं पदं सवितारमुपह्वये स चेत्ता देवतास्तीति यूयं विजानीत ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरितः पूर्वमन्त्रार्थस्य विवरणं वेदितव्यम्। चेतनस्वरूपस्य परमात्मन उपासनां विहाय कस्याप्यन्यस्य जडस्योपासना कदापि नैव कार्या, नहि जडमुपासितं सद्धानिलाभकारकं रक्षकं च भवति, तस्माच्चेतनैः सर्वैर्जीवैश्चेतनो जगदीश्वर एवोपासनीयो नेतरो जडत्वादिगुणयुक्तः पदार्थः ॥१० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात पूर्वीच्या मंत्राप्रमाणेच गायत्री (ज्याला गुरुमंत्र असेही म्हणतात) प्रमाणेच अर्थ आहे, हे माणसांनी जाणावे. चेतन परमेश्वराची उपासना सोडून कोणत्याही जड पदार्थांची उपासना कधीही करू नये. कारण ज्या जड पदार्थांची उपासना केली जाते तो लाभ किंवा हानी देणारा व रक्षण करणारा नसतो त्यामुळे सर्व चेतन जीवांनी चेतनस्वरूप परमेश्वराची उपासना करावी इतर जड पदार्थांची उपासना करणे योग्य नाही.