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प्र बा॒हवा॑ सिसृतं जी॒वसे॑ न॒ऽआ नो॒ गव्यू॑तिमुक्षतं घृ॒तेन॑। आ मा॒ जने॑ श्रवयतं युवाना श्रु॒तं मे॑ मित्रावरुणा॒ हवे॒मा ॥९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। बा॒हवा॑। सि॒सृ॒त॒म्। जी॒वसे॑। नः॒। आ। नः॒। गव्यू॑तिम्। उ॒क्ष॒त॒म्। घृ॒तेन॑। आ। मा। जने॑। श्र॒व॒य॒त॒म्। यु॒वा॒ना॒। श्रु॒तम्। मे॒। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। हवा॑। इ॒मा ॥९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:9


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों के विषय में अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मित्रावरुणा) मित्र और वरुण उत्तम जन (बाहवा) दोनों बाहु के तुल्य (युवाना) मिलान और अलग करने हारे तुम (नः) हमारे (जीवसे) जीने के लिए (मा) मुझ को (प्र, सिसृतम्) प्राप्त होओ (घृतेन) जल से (नः) हमारे (गव्यूतिम्) दो कोश पर्यन्त (आ, उक्षतम्) सब ओर से सेचन करो। नाना प्रकार की कीर्त्ति को (आ, श्रवयतम्) अच्छे प्रकार सुनाओ और (मे) मेरे (जने) मनुष्यगण में (इमा) इन (हवा) वाद-विवादों को (श्रुतम्) सुनो ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापक और उपदेशक प्राण और उदान के समान सब के जीवन के कारण होवें, विद्या और उपदेश से सब के आत्माओं को जल से वृक्षों के समान सेचन करें ॥९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

(प्र) (बाहवा) बाहू इव। अत्र सुपां सुलुग् [अ०७.१.३९] इत्याकारादेशः (सिसृतम्) प्राप्नुतम् (जीवसे) जीवितुम् (नः) अस्माकम् (आ) (नः) अस्माकम् (गव्यूतिम्) क्रोशयुग्मम् (उक्षतम्) सिञ्चेताम् (घृतेन) जलेन (आ) (मा) माम् (जने) (श्रवयतम्) श्रावयतम्। वृद्ध्यभावश्छान्दसः (युवाना) युवानौ मिश्रितामिश्रितयोः कर्त्तारौ (श्रुतम्) शृणुतम् (मे) मम (मित्रावरुणा) मित्रश्च वरुणश्च तौ (हवा) हवानि हवनानि (इमा) इमानि ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मित्रावरुणा ! बाहवा युवाना युवां नो जीवसे मा प्रसिसृतं घृतेन नो गव्यूतिमोक्षतं नाना कीर्तिमाश्रवयतं मे जन इमा हवा श्रुतम् ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापकोपदेष्टारौ प्राणोदानवत्सर्वेषां जीवनहेतू भवेतां विद्योपदेशाभ्यां सर्वेषामात्मनो जलेन वृक्षानिव सिञ्चेताम् ॥९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अध्यापक व उपदेशक यांनी प्राण व उदान याप्रमाणे सर्वांच्या जीवनाचे कारण अनावे आणि ज्याप्रमाणे वृक्षांना जलाने सिंचित करतात त्याप्रमाणे सर्व आत्म्यांना विद्या व उपदेश सिंचित करावे.