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अ॒ग्निम॒द्य होता॑रमवृणीता॒यं यज॑मानः॒ पच॒न् पक्तीः॒ पच॑न् पुरो॒डाशा॑न् ब॒ध्नन्न॒श्विभ्यां॒ छाग॒ꣳ सर॑स्वत्यै मे॒षमिन्द्रा॑यऽऋष॒भꣳ सु॒न्वन्न॒श्विभ्या॒ सर॑स्वत्या॒ऽइन्द्रा॑य सु॒त्राम्णे॑ सुरासो॒मान् ॥५९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निम्। अ॒द्य। होता॑रम्। अ॒वृणी॒त॒। अ॒यम्। यज॑मानः। पच॑न्। पक्तीः॑। पच॑न्। पु॒रो॒डाशा॑न्। ब॒ध्नन्। अ॒श्विभ्या॒मित्य॒श्विऽभ्या॑म्। छाग॑म्। सर॑स्वत्यै। मे॒षम्। इन्द्रा॑य। ऋ॒ष॒भम्। सु॒न्वन्। अ॒श्विभ्या॒मित्य॒श्विऽभ्या॑म्। सर॑स्वत्यै। इन्द्रा॑य। सु॒त्राम्ण॒ इति सु॒ऽत्राम्णे॑। सु॒रा॒सो॒मानिति॑ सुराऽसो॒मान् ॥५९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:59


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (अयम्) यह (पक्तीः) पचाने के प्रकारों को (पचन्) पचाता अर्थात् सिद्ध करता और (पुरोडाशान्) यज्ञ आदि कर्म में प्रसिद्ध पाकों को (पचन्) पचाता हुआ (यजमानः) यज्ञ करने हारा (होतारम्) सुखों के देनेवाले (अग्निम्) आग को (अवृणीत) स्वीकार वा जैसे (अश्विभ्याम्) प्राण और अपान के लिए (छागम्) छेरी (सरस्वत्यै) विशेष ज्ञानयुक्त वाणी के लिए (मेषम्) भेड़ और (इन्द्राय) परम ऐश्वर्य के लिए (ऋषभम्) बैल को (बध्नन्) बाँधते हुए वा (अश्विभ्याम्) प्राण, अपान (सरस्वत्यै) विशेष ज्ञानयुक्त वाणी और (सुत्राम्णे) भलीभाँति रक्षा करने हारे (इन्द्राय) राजा के लिए (सुरासोमान्) उत्तम रसयुक्त पदार्थों का (सुन्वन्) सार निकालते हैं, वैसे तुम (अद्य) आज करो ॥५९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे पदार्थों को मिलाने हारे वैद्य अपान के लिए छेरी का दूध, वाणी बढ़ने के लिए भेड़ का दूध, ऐश्वर्य के बढ़ने के लिए बैल, रोग निवारण के लिए औषधियों के रसों को इकट्ठा और अच्छे संस्कार किये हुए अन्नों का भोजन कर उससे बलवान् होकर दुष्ट शत्रुओं को बाँधते हैं, वैसे वे परम ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥५९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अग्निम्) पावकम् (अद्य) इदानीम् (होतारम्) सुखानां दातारम् (अवृणीत) वृणोति (अयम्) (यजमानः) (पचन्) (पक्तीः) (पचन्) (पुरोडाशान्) पाकविशेषान् (बध्नन्) बध्नन्ति (अश्विभ्याम्) प्राणापानाभ्याम् (छागम्) (सरस्वत्यै) विज्ञानयुक्तायै वाचे (मेषम्) अविम् (इन्द्राय) परमैश्वर्य्याय (ऋषभम्) वृषभम् (सुन्वन्) सुनुयुः (अश्विभ्याम्) (सरस्वत्यै) (इन्द्राय) राज्ञे (सुत्राम्णे) (सुरासोमान्) सुरया रसेन युक्तान् सोमान् पदार्थान् ॥५९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथाऽयं पक्तीः पचन् पुरोडाशान् पचन् यजमानो होतरमग्निमवृणीत यथाऽश्विभ्यां छागं सरस्वत्यै मेषमिन्द्रायर्षभं बध्नन्नश्विभ्यां सरस्वत्यै सुत्राम्ण इन्द्राय सुरासोमानसुन्वँस्तथा यूयमद्य कुरुत ॥५९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यथा सङ्गन्तारो वैद्या अपानार्थं छागदुग्धं वाग्वृद्ध्यर्थमविपय ऐश्वर्य्याय गौः पयो रोगनिवारणायौषधिरसांश्च संपाद्य सुसंस्कृतान्यन्नानि भुक्त्वा बलवन्तो भूत्वा दुष्टान् शत्रून् बध्नन्ति ते परमैश्वर्यं लभन्ते ॥५९।
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे पदार्थांचा संयोग करणारे वैद्य अपान वायूसाठी शेळीचे दूध, वाणी विकसित होण्यासाठी लांडगीचे दूध, ऐश्वर्य वाढविण्यासाठी गाईचे दूध व रोग निवारण करण्यासाठी औषधांचा रस एकत्र करून संस्कारित केलेल्या अन्नाचे भोजन करवितात व बलवान बनवून राजाला दुष्ट शत्रूंचे निवारण करावयास लावतात. तेथे परम ऐश्वर्य प्राप्त होऊ शकते.