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दे॒वी जोष्ट्री॒ सर॑स्वत्य॒श्विनेन्द्र॑मवर्धयन्। श्रोत्रं॑ न कर्ण॑यो॒र्यशो॒ जोष्ट्री॑भ्यां दधुरिन्द्रि॒यं व॑सु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य व्यन्तु॒ यज॑ ॥५१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वीऽइति॑ दे॒वी। जोष्ट्री॒ऽइति॒। जोष्ट्री॑। सर॑स्वती। अ॒श्विना॑। इन्द्र॑म्। अ॒व॒र्ध॒य॒न्। श्रोत्र॑म्। न। कर्ण॑योः। यशः॑। जोष्ट्री॒भ्याम्। द॒धुः॒। इ॒न्द्रि॒यम्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व्य॒न्तु॒। यज॑ ॥५१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:51


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य कैसे होते हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जैसे (देवी) प्रकाश देनेवाली (जोष्ट्री) सेवने योग्य (सरस्वती) विशेष ज्ञान की निमित्त सायंकाल और प्रातःकाल की वेला तथा (अश्विना) पवन और बिजुलीरूप अग्नि (इन्द्रम्) सूर्य को (अवर्धयन्) बढ़ाते अर्थात् उन्नति देते हैं वा मनुष्य (जोष्ट्रीभ्याम्) संसार को सेवन करती हुई उक्त प्रातःकाल और सायंकाल की वेलाओं से (कर्णयोः) कानों में (यशः) कीर्ति को (श्रोत्रम्) जिस से वचन को सुनता है, उस कान के ही (न) समान (दधुः) धारण करते हैं वा (वसुधेयस्य) जिस में धन धरा जाय उस कोशसम्बन्धी (वसुवने) धन को सेवन करनेवाले (इन्द्रियम्) धन को (व्यन्तु) विशेषता से प्राप्त होते हैं, वैसे तू (यज) सब व्यवहारों की सङ्गति किया कर ॥५१ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो सूर्य के कारणों को जानते हैं, वे यशस्वी होकर धनवान्, कान्तिमान् शोभायमान होते हैं ॥५१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः कीदृशा भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(देवी) प्रकाशदात्री (जोष्ट्री) सेवनीया (सरस्वती) विज्ञाननिमित्ता (अश्विना) वायुविद्युतौ (इन्द्रम्) सूर्यम् (अवर्धयन्) वर्धयन्ति (श्रोत्रम्) येन शृणोति तत् (न) इव (कर्णयोः) श्रोत्रयोः (यशः) कीर्तिम् (जोष्ट्रीभ्याम्) सेविकाभ्यां वेलाभ्याम् (दधुः) दधति (इन्द्रियम्) धनम् (वसुवने) धनसेविने (वसुधेयस्य) धनकोशस्य (व्यन्तु) (यज) ॥५१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यथा देवी जोष्ट्री सरस्वत्यश्विनेन्द्रमवर्धयन् मनुष्या वा जोष्ट्रीभ्यां कर्णयोर्यशः श्रोत्रं न दधुर्वसुधेयस्य वसुवन इन्द्रियं व्यन्तु तथा त्वं यज ॥५१ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये सूर्यकारणानि विदन्ति ते यशस्विनो भूत्वा श्रीमन्तो भवन्ति ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे विद्वान सूर्याचे कारण जाणतात ते यशस्वी होऊन धनवान, तेजस्वी व सुशोभित होतात.