दे॒वी जोष्ट्री॒ सर॑स्वत्य॒श्विनेन्द्र॑मवर्धयन्। श्रोत्रं॑ न कर्ण॑यो॒र्यशो॒ जोष्ट्री॑भ्यां दधुरिन्द्रि॒यं व॑सु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य व्यन्तु॒ यज॑ ॥५१ ॥
दे॒वीऽइति॑ दे॒वी। जोष्ट्री॒ऽइति॒। जोष्ट्री॑। सर॑स्वती। अ॒श्विना॑। इन्द्र॑म्। अ॒व॒र्ध॒य॒न्। श्रोत्र॑म्। न। कर्ण॑योः। यशः॑। जोष्ट्री॒भ्याम्। द॒धुः॒। इ॒न्द्रि॒यम्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व्य॒न्तु॒। यज॑ ॥५१ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्य कैसे होते हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्याः कीदृशा भवन्तीत्याह ॥
(देवी) प्रकाशदात्री (जोष्ट्री) सेवनीया (सरस्वती) विज्ञाननिमित्ता (अश्विना) वायुविद्युतौ (इन्द्रम्) सूर्यम् (अवर्धयन्) वर्धयन्ति (श्रोत्रम्) येन शृणोति तत् (न) इव (कर्णयोः) श्रोत्रयोः (यशः) कीर्तिम् (जोष्ट्रीभ्याम्) सेविकाभ्यां वेलाभ्याम् (दधुः) दधति (इन्द्रियम्) धनम् (वसुवने) धनसेविने (वसुधेयस्य) धनकोशस्य (व्यन्तु) (यज) ॥५१ ॥