वांछित मन्त्र चुनें

म॒हीमू॒ षु मा॒तर॑ꣳ सुव्र॒ताना॑मृ॒तस्य॒ पत्नी॒मव॑से हुवेम। तु॒वि॒क्ष॒त्राम॒जर॑न्तीमुरू॒ची सु॒शर्मा॑ण॒मदितिꣳ सु॒प्रणी॑तिम् ॥५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒हीम्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। सु। मा॒तर॑म्। सु॒व्र॒ताना॑म्। ऋ॒तस्य॑। पत्नी॑म्। अव॑से। हु॒वे॒म॒। तु॒वि॒क्ष॒त्रामिति॑ तुविऽक्ष॒त्राम्। अ॒जर॑न्तीम्। उ॒रू॒चीम्। सु॒शर्मा॑ण॒मिति॑ सु॒ऽशर्मा॑णम्। अदि॑तिम्। सु॒प्रणी॑तिम्। सु॒प्रनी॑ति॒मिति॑ सु॒ऽप्रनी॑तिम् ॥५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पृथिवी के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (मातरम्) माता के समान स्थित (सुव्रतानाम्) जिन के शुभ सत्याचरण हैं, उन को (ऋतस्य) प्राप्त हुए सत्य की (पत्नीम्) स्त्री के समान वर्त्तमान (तुविक्षत्राम्) बहुत धनवाली (अजरन्तीम्) जीर्णपन से रहित (उरूचीम्) बहुत पदार्थों को प्राप्त कराने हारी (सुशर्माणम्) अच्छे प्रकार के गृह से और (सुप्रणीतिम्) उत्तम नीतियों से युक्त (उ) उत्तम (अदितिम्) अखण्डित (महीम्) पृथिवी को (अवसे) रक्षा आदि के लिए (सु, हुवेम) ग्रहण करते हैं, वैसे तुम भी ग्रहण करो ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे माता सन्तानों और पतिव्रता स्त्री पति का पालन करती है, वैसे यह पृथिवी सब का पालन करती है ॥५ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ पृथिव्या विषयमाह ॥

अन्वय:

(महीम्) भूमिम् (उ) उत्तमे (सु) शोभने (मातरम्) मातरमिव वर्त्तमानाम् (सुव्रतानाम्) शोभनानि व्रतानि सत्याचरणानि येषां तेषाम् (ऋतस्य) प्राप्तसत्यस्य (पत्नीम्) स्त्रीवद्वर्त्तमानाम् (अवसे) रक्षणाद्याय (हुवेम) आदद्याम (तुविक्षत्राम्) तुविर्बहु क्षत्रं धनं यस्यां ताम् (अजरन्तीम्) वयोहानिरहिताम् (उरूचीम्) या उरूणि बहून्यञ्चति प्राप्नोति ताम् (सुशर्माणम्) शोभनानि शर्माणि गृहाणि यस्यास्ताम् (अदितिम्) अखण्डिताम् (सुप्रणीतिम्) शोभनाः प्रकृष्टा नीतयो यस्यां ताम् ॥५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयं मातरमिव सुव्रतानामृतस्य पत्नीं तुविक्षत्रामजरन्तीमुरूचीं सुशर्माणं सुप्रणीतिमु महीमदितिमवसे सुहुवेम तथा यूयमपि गृह्णीत ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा माताऽपत्यानि पतिव्रता पतिं च पालयति तथेयं भूमिः सर्वान् रक्षति ॥५ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माता जसे संतानाचे पालन करते व पतिव्रता स्री पतीकडे लक्ष देते, तसेच पृथ्वीही सर्वांचे पालन करते.