वांछित मन्त्र चुनें

दे॒वीर्द्वारो॑ऽअ॒श्विना॑ भि॒षजेन्द्रे॒ सर॑स्वती। प्रा॒णं न वी॒र्य्यं᳖ न॒सि द्वारो॑ दधुरिन्द्रि॒यं व॑सु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य व्यन्तु॒ यज॑ ॥४९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वीः। द्वारः॑। अ॒श्विना॑। भि॒षजा॑। इन्द्रे॑। सर॑स्वती। प्रा॒णम्। न। वी॒र्य्य᳖म्। न॒सि। द्वारः॑। द॒धुः॒। इ॒न्द्रि॒यम्। व॒सु॒वन इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व्य॒न्तु॒। यज॑ ॥४९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:49


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों का उपदेश कैसा होता है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जैसे (अश्विना) पवन और सूर्य्य वा (सरस्वती) विशेष ज्ञानवाली स्त्री और (भिषजा) वैद्य (इन्द्रे) ऐश्वर्य के निमित्त (देवीः) अतीव दीपते अर्थात् चमकाते हुए (द्वारः) पैठने और निकलने के अर्थ बने हुए द्वारों को प्राप्त होते हुए प्राणियों की (नसि) नासिका में (प्राणम्) जो श्वास आती उस के (न) समान (वीर्य्यम्) बल और (द्वारः) द्वारों अर्थात् शरीर के प्रसिद्ध नव छिद्रों को (दधुः) धारण करें (वसुवने) वा धन का सेवन करने के लिए (वसुधेयस्य) धनकोश के (इन्द्रियम्) धन को विद्वान् जन (व्यन्तु) प्राप्त हों, वैसे तू (यज) सब व्यवहारों की सङ्गति किया कर ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे सूर्य्य और चन्द्रमा का प्रकाश द्वारों से घर को पैठ घर के भीतर प्रकाश करता है, वैसे विद्वानों का उपदेश कानों में प्रविष्ट होकर भीतर मन में प्रकाश करता है, ऐसे जो विद्या के साथ अच्छा यत्न करते हैं, वे धनवान् होते हैं ॥४९ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वदुपदेशः कीदृशो भवतीत्याह ॥

अन्वय:

(देवीः) देदीप्यमानाः (द्वारः) प्रवेशनिर्गमार्थानि द्वाराणि (अश्विना) वायुसूर्य्यौ (भिषजा) वैद्यौ (इन्द्रे) ऐश्वर्य्ये (सरस्वती) विज्ञानवती स्त्री (प्राणम्) जीवनहेतुम् (न) इव (वीर्य्यम्) (नसि) नासिकायाम् (द्वारः) (दधुः) (इन्द्रियम्) धनम् (वसुवने) धनसेवनाय (वसुधेयस्य) धनकोशस्य (व्यन्तु) (यज) ॥४९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यथाश्विना सरस्वती भिषजेन्द्रे देवीर्द्वारः प्राप्नुवतो नसि प्राणं न वीर्य्यं द्वारश्च दधुर्वसुवने वसुधेयस्येन्द्रियं विद्वांसो व्यन्तु तथा त्वं यज ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा सूर्य्याचन्द्रप्रकाशो द्वारेभ्यो गृहं प्रविश्यान्तः प्रकाशते तथा विद्वदुपदेशः श्रोत्रान् प्रविश्य स्वान्ते प्रकाशते। एवं ये विद्यया प्रयतन्ते ते श्रीमन्तो जायन्ते ॥४९ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे सूर्य व चंद्र यांचा प्रकाश दारातून घरात शिरतो, तसेच विद्वानांचा उपदेश कानाने ऐकून माणसांचे मन प्रकाशित होते. अशाप्रकारे जे विद्याप्राप्ती बरोबरच चांगल्याप्रकारे प्रयत्नही करतात ते धनवान होतात.