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होता॑ यक्षद॒ग्निꣳ स्वि॑ष्ट॒कृत॒मया॑ड॒ग्नि॒र॒श्विनो॒श्छाग॑स्य ह॒विषः॑ प्रि॒या धामा॒न्यया॒ट्सर॑स्वत्या मे॒षस्य॑ ह॒विषः॑ प्रि॒या धामा॒न्यया॒डिन्द्र॑स्यऽऋष॒भस्य॑ ह॒विषः॑ प्रि॒या धामा॒न्यया॑ड॒ग्नेः प्रि॒या धामा॒न्यया॒ट्सोम॑स्य प्रि॒या धामा॒न्यया॒डिन्द्र॑स्य सु॒त्राम्णः॑ प्रि॒या धामा॒न्यया॑ट्सवि॒तुः प्रि॒या धामा॒न्यया॒ड् वरु॑णस्य प्रि॒या धामा॒न्यया॒ड् वन॒स्पतेः॑ प्रि॒या पाथा॒स्यया॑ड् दे॒वाना॑माज्य॒पानां॑ प्रि॒या धामा॑नि॒ यक्ष॑द॒ग्नेर्होतुः॑ प्रि॒या धामा॑नि॒ यक्ष॒त्स्वं म॑हि॒मान॒माय॑जता॒मेज्या॒ऽइषः॑ कृ॒णोतु॒ सोऽअ॑ध्व॒रा जा॒तवे॑दा जु॒षता॑ ह॒विर्होत॒र्यज॑ ॥४७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। अ॒ग्निम्। स्वि॒ष्ट॒कृत॒मिति॑ स्विष्ट॒ऽकृत॑म्। अया॑ट्। अ॒ग्निः। अ॒श्विनोः॑। छाग॑स्य। ह॒विषः॑। प्रि॒या। धामा॑नि। अया॑ट्। सर॑स्वत्याः। मे॒षस्य॑। ह॒विषः॑। प्रि॒या। धामा॑नि। अया॑ट्। इन्द्र॑स्य। ऋ॒ष॒भस्य॑। ह॒विषः॑। प्रि॒या। धामा॑नि। अया॑ट्। अ॒ग्नेः। प्रि॒या। धामा॑नि। अया॑ट्। सोम॑स्य। प्रि॒या। धामा॑नि। अया॑ट्। इन्द्र॑स्य। सु॒त्राम्ण॒ इति॑ सु॒ऽत्राम्णः॑। प्रि॒या। धामा॑नि। अया॑ट्। स॒वि॒तुः प्रि॒या। धामा॑नि। अया॑ट्। वरु॑णस्य। प्रि॒या। धामा॑नि। अया॑ट्। वन॒स्पतेः॑। प्रि॒या। पाथा॑सि। अया॑ट्। दे॒वाना॑म्। आ॒ज्य॒पाना॒मित्या॑ज्य॒ऽपाना॑म्। प्रि॒या। धामा॑नि। यक्ष॑त्। अ॒ग्नेः। होतुः॑। प्रि॒या। धामा॑नि। य॒क्ष॒त्। स्वम्। म॒हि॒मान॑म्। आ। य॒ज॒ता॒म्। एज्या॒ इत्या॒ऽइज्याः॑। इषः॑। कृ॒णोतु॑। सः। अ॒ध्व॒रा। जा॒तवे॑दा॒ इति॑ जा॒तऽवे॑दाः। जु॒षता॑म्। ह॒विः। होतः॑। यज॑ ॥४७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:47


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) देने हारे ! जैसे (होता) लेने हारा (स्विष्टकृतम्) भलीभाँति चाहे हुए पदार्थ से प्रसिद्ध किये (अग्निम्) अग्नि को (यक्षत्) प्राप्त और (अयाट्) उस की प्रशंसा करे वा जैसे (अग्निः) प्रसिद्ध आग (अश्विनोः) पवन बिजुली (छागस्य) बकरा आदि पशु (हविषः) और लेने योग्य पदार्थ के (प्रिया) मनोहर (धामानि) जन्म, स्थान और नाम को (अयाट्) प्राप्त हो वा (सरस्वत्याः) वाणी (मेषस्य) सींचने वा दूसरे के जीतने की इच्छा करनेवाले प्राणी (हविषः) और ग्रहण करने योग्य पदार्थ के (प्रिया) प्यारे मनोहर (धामानि) जन्म, स्थान और नाम की (अयाट्) प्रशंसा करे वा (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्ययुक्त (ऋषभस्य) उत्तम गुण, कर्म और स्वभाववाले राजा और (हविषः) ग्रहण करने योग्य पदार्थ के (प्रिया) मनोहर (धामानि) जन्म, स्थान और नाम की (अयाट्) प्रशंसा करे वा (अग्नेः) बिजुली रूप अग्नि के (प्रिया) मनोहर (धामानि) जन्म, स्थान और नाम की (अयाट्) प्रशंसा करे वा (सोमस्य) ऐश्वर्य्य के (प्रिया) मनोहर (धामानि) जन्म, स्थान और नाम की (अयाट्) प्रशंसा करे वा (सुत्राम्णः) भलीभाँति रक्षा करनेवाले (इन्द्रस्य) सेनापति के (प्रिया) मनोहर (धामानि) जन्म, स्थान और नाम की (अयाट्) प्रशंसा करे वा (सवितुः) समस्त ऐश्वर्य्य के उत्पन्न करने हारे उत्तम पदार्थज्ञान के (प्रिया) मनोहर (धामानि) जन्म स्थान और नाम की (अयाट्) प्रशंसा करे वा (वरुणस्य) सब से उत्तम जन और जल के (प्रिया) मनोहर (धामानि) जन्म, स्थान और नाम की (अयाट्) प्रशंसा करे वा (वनस्पतेः) वट आदि वृक्षों के (प्रिया) तृप्ति करानेवाले (पाथांसि) फलों को (अयाट्) प्राप्त हो वा (आज्यपानाम्) जानने योग्य पदार्थ की रक्षा करने और रस पीनेवाले (देवानाम्) विद्वानों के (प्रिया) प्यारे मनोहर (धामानि) जन्म, स्थान और नाम का (यक्षत्) मिलाना व सराहना करे वा (होतुः) जलादिक ग्रहण करने और (अग्नेः) प्रकाश करनेवाले सूर्य्य के (प्रिया) मनोहर (धामानि) जन्म, स्थान और नाम की (यक्षत्) प्रशंसा करे (स्वम्) अपने (महिमानम्) बड़प्पन का (आ, यजताम्) ग्रहण करे वा जैसे (जातवेदाः) उत्तम बुद्धि को (एज्याः) अच्छे प्रकार सङ्ग योग्य उत्तम क्रियाओं और (इषः) चाहनाओं को (कृणोतु) करे (सः) वह (अध्वरा) न छोड़ने न विनाश करने योग्य यज्ञों का और (हविः) सङ्ग करने योग्य पदार्थ का (जुषताम्) सेवन करे, वैसे तू (यज) सब व्यवहारों की सङ्गति किया कर ॥४७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य अपने चाहे हुए को सिद्ध करनेवाले अग्नि आदि संसारस्थ पदार्थों को अच्छे प्रकार जानकर प्यारे मन से चाहे हुए सुखों को प्राप्त होते हैं, वे अपने बड़प्पन का विस्तार करते हैं ॥४७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(होता) आदाता (यक्षत्) सङ्गच्छेत् (अग्निम्) पावकम् (स्विष्टकृतम्) स्विष्टेन कृतं स्विष्टकृतम् (अयाट्) यजेत् (अग्निः) पावकः (अश्विनोः) वायुविद्युतोः (छागस्य) (हविषः) आदातुमर्हस्य (प्रिया) (धामानि) (अयाट्) यजेत् (सरस्वत्याः) वाण्याः (मेषस्य) (हविषः) आदातुमर्हस्य (प्रिया) (धामानि) (अयाट्) यजेत् (इन्द्रस्य) परमैश्वर्ययुक्तस्य (ऋषभस्य) उत्कृष्टगुणकर्मस्वभावस्य राज्ञः (हविषः) ग्रहीतुमर्हस्य (प्रिया) (धामानि) (अयाट्) (अग्नेः) विद्युतः (प्रिया) (धामानि) (अयाट्) (सोमस्य) ऐश्वर्यस्य (प्रिया) (धामानि) (अयाट्) (इन्द्रस्य) सेनेशस्य (सुत्राम्णः) सुष्ठु रक्षकस्य (प्रिया) (धामानि) (अयाट्) (सवितुः) (प्रिया) (धामानि) (अयाट्) (वरुणस्य) सर्वोत्कृष्टस्य जलस्य वा (प्रिया) (धामानि) (अयाट्) (वनस्पतेः) वटादेः (प्रिया) तर्पकाणि (पाथांसि) फलादीनि (अयाट्) (देवानाम्) विदुषाम् (आज्यपानाम्) ज्ञातव्यरक्षकाणां रसानां वा (प्रिया) (धामानि) (यक्षत्) यजेत् (अग्नेः) प्रकाशकस्य सूर्यस्य (होतुः) आदातुः (प्रिया) (धामानि) (यक्षत्) (स्वम्) स्वकीयम् (महिमानम्) महत्त्वम् (आ) समन्तात् (यजताम्) गृह्णातु (एज्याः) समन्तात् यष्टुं सङ्गन्तुं योग्याः क्रियाः (इषः) इच्छाः (कृणोतु) करोतु (सः) (अध्वरा) अहिंसनीयान् यज्ञान् (जातवेदाः) प्राप्तप्रज्ञः (जुषताम्) सेवताम् (हविः) सङ्गन्तव्यं वस्तु (होतः) (यज) ॥४७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतर्यथा होता स्विष्टकृतमग्निं यक्षद् यथाग्निरश्विनोश्छागस्य हविषः प्रिया धामान्ययाट्सरस्वत्या मेषस्य हविषः प्रिया धामान्ययाडिन्द्रस्यर्षभस्य हविषः प्रिया धामान्ययाडग्नेः प्रिया धामान्ययाट्सोमस्य प्रिया धामान्ययाट्सुत्राम्ण इन्द्रस्य प्रिया धामान्ययाट्सवितुः प्रिया धामान्ययाड् वरुणस्य प्रिया धामान्ययाड् वनस्पतेः प्रिया पाथांस्ययाडाज्यपानां देवानां प्रिया धामानि यक्षत् होतुरग्नेः प्रिया धामानि यक्षत्स्वं महिमानमायजतां यथा जातवेदा य एज्या इषः कृणोतु सोध्वरा हविश्च जुषतां तथा त्वं यज ॥४७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये स्वेष्टसाधकानग्न्यादीन् सृष्टिस्थान् पदार्थान् सम्यग्विज्ञाय प्रियाणि सुखान्याप्नुवन्ति, ते स्वं महिमानं प्रथन्ते ॥४७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे इच्छित गोष्टी सिद्ध करणाऱ्या अग्नी वगैरे जगातील पदार्थांना चांगल्याप्रकारे जाणून मनोवांछित सुख प्राप्त करतात त्यांना मोठेपण प्राप्त होते.