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होता॑ यक्षद॒श्विनौ॒ सर॑स्वती॒मिन्द्र॑ꣳ सु॒त्रामा॑णमि॒मे सोमाः॑ सु॒रामा॑ण॒श्छागै॒र्न मे॒षैर्ऋ॑ष॒भैः सु॒ताः शष्पै॒र्न तोक्म॑भिर्ला॒जैर्मह॑स्वन्तो॒ मदा॒ मास॑रेण॒ परि॑ष्कृताः शु॒क्राः पय॑स्वन्तो॒ऽमृताः॒ प्र॑स्थिता वो मधु॒श्चुत॒स्तान॒श्विना॒ सर॑स्व॒तीन्द्रः॑ सु॒त्रामा॑ वृत्र॒हा जु॒षन्ता॑ सो॒म्यं मधु॒ पिब॑न्तु॒ मद॑न्तु॒ व्यन्तु॒ होत॒र्यज॑ ॥४२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। अ॒श्विनौ॑। सर॑स्वतीम्। इन्द्र॑म्। सु॒त्रामा॑णमिति॑ सु॒ऽत्रामा॑णम्। इ॒मे। सोमाः॑। सु॒रामा॑णः। छागैः॑। न। मे॒षैः। ऋ॒ष॒भैः। सु॒ताः। शष्पैः॑। न। तोक्म॑भिरिति॒ तोक्म॑ऽभिः। ला॒जैः। मह॑स्वन्तः। मदाः॑। मास॑रेण। परि॑ष्कृताः। शु॒क्राः। पय॑स्वन्तः। अ॒मृताः॑। प्र॑स्थिता॒ इति॒ प्रऽस्थि॑ताः। वः॒। म॒धु॒श्चुत॒ इति॑ मधु॒ऽश्चुतः॑। तान्। अ॒श्विना॑। सर॑स्वती। इन्द्रः॑। सु॒त्रामा॑। वृ॒त्र॒हा। जु॒षन्ता॑म्। सो॒म्यम्। मधु॑। पिब॑न्तु। मद॑न्तु। व्यन्तु॑। होतः॑। यज॑ ॥४२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:42


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) लेने हारा जैसे (होता) देनेवाला (अश्विनौ) पढ़ाने और उपदेश करनेवाले पुरुषो ! (सरस्वतीम्) तथा विज्ञान की भरी हुई वाणी और (सुत्रामाणम्) प्रजाजनों की अच्छी रक्षा करने हारे (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्ययुक्त राजा को (यक्षत्) प्राप्त हो वा (इमे) ये जो (सुरामाणः) अच्छे देने हारे (सोमाः) ऐश्वर्यवान् सभासद् (सुताः) जो कि अभिषेक पाये हुए हों वे (छागैः) विनाश करने योग्य पदार्थों वा बकरा आदि पशुओं (न) वैसे तथा (मेषैः) देखने योग्य पदार्थ वा मेंढ़ों (ऋषभैः) श्रेष्ठ पदार्थों वा बैलों और (शष्पैः) हिंसकों से जैसे (न) वैसे (तोक्मभिः) सन्तानों और (लाजैः) भुँजे अन्नों से (महस्वन्तः) जिन के सत्कार विद्यमान हों वे मनुष्य और (मदाः) आनन्द (मासरेण) पके हुए चावलों के साथ (परिष्कृताः) शोभायमान (शुक्राः) शुद्ध (पयस्वन्तः) प्रशंसित जल और दूध से युक्त (अमृताः) जिन में अमृत एक रस (मधुश्चुतः) जिन से मधुरादि गुण टपकते वा (प्रस्थिताः) एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते हुए (वः) तुम्हारे लिए पदार्थ बनाए हैं (तान्) उनको प्राप्त होवे वा जैसे (अश्विना) सुन्दर सत्कार पाये हुए पुरुष (सरस्वती) प्रशंसित विद्यायुक्त स्त्री (सुत्रामा) अच्छी रक्षा करनेवाले (वृत्रहा) मेघ को छिन्न भिन्न करनेवाले सूर्य के समान (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान् सज्जन (सोम्यम्) शीतलता गुण के योग्य (मधु) मीठेपन का (जुषन्ताम्) सेवन करें (पिबन्तु) पीवें (मदन्तु) हरखें और समस्त विद्याओं को (व्यन्तु) व्याप्त हों वैसे तू (यज) सब पदार्थों की यथायोग्य सङ्गति किया कर ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो संसार के पदार्थों की विद्या सत्य वाणी और भलीभाँति रक्षा करने हारे राजा को पाकर पशुओं के दूध आदि पदार्थों से पुष्ट होते हैं, वे अच्छे रसयुक्त, अच्छे संस्कार किये हुए अन्न आदि पदार्थ जो सुपरीक्षित हों, उन को युक्ति के साथ खा और रसों को पी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के निमित्त अच्छा यत्न करते हैं, वे सदैव सुखी होते हैं ॥४२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(होता) दाता (यक्षत्) यजेत् (अश्विनौ) अध्यापकोपदेष्टारौ (सरस्वतीम्) विज्ञानवतीं वाचम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्ययुक्तराजानम् (सुत्रामाणम्) प्रजायाः सुष्ठु रक्षकम् (इमे) (सोमाः) ऐश्वर्य्यवन्तः सभासदः (सुरामाणः) सुष्ठु दातारः (छागैः) (न) इव (मेषैः) (ऋषभैः) (सुताः) अभिषेकक्रियाजाताः (शष्पैः) हिंसकैः। अत्रौणादिको बाहुलकात्कर्त्तरि यत्। (न) इव (तोक्मभिः) अपत्यैः (लाजैः) भर्जितैः (महस्वन्तः) महांसि पूजनानि सत्करणानि विद्यन्ते येषान्ते (मदाः) आनन्दाः (मासरेण) ओदनेन (परिष्कृताः) परितः शोभिताः। संपर्य्युपेभ्यः करोतौ भूषण इति सुट्। (शुक्राः) शुद्धाः (पयस्वन्तः) प्रशस्तजलदुग्धादियुक्ताः (अमृताः) अमृतात्मैकरसाः (प्रस्थिताः) कृतप्रस्थानाः (वः) युष्मभ्यम् (मधुश्चुतः) मधुरादिगुणा विश्लिष्यन्ते येभ्यः (तान्) (अश्विना) सुसत्कृतौ पुरुषौ (सरस्वती) प्रशस्तविद्यायुक्ता स्त्री (इन्द्रः) (सुत्रामा) सुष्ठु रक्षकः (वृत्रहा) मेघस्य हन्ता सूर्य्य इव (जुषन्ताम्) सेवन्ताम् (सोम्यम्) सोमार्हम् (मधु) मधुररसम् (पिबन्तु) (मदन्तु) आनन्दन्तु (व्यन्तु) व्याप्नुवन्तु (होतः) (यज) ॥४२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतर्यथा होताऽश्विनौ सरस्वतीं सुत्रामाणमिन्द्रं यक्षद्य इमे सुरामाणः सोमाः सुताश्छागैर्न मेषैर्ऋषभैः शष्पैर्न तोक्मभिर्लाजैर्महस्वन्तो मदा मासरेण परिष्कृताः शुक्राः पयस्वन्तोऽमृता मधुश्चुतः प्रस्थिता वो निर्मितास्तान् यक्षद्यथाऽश्विना सरस्वती सुत्रामा वृत्रहेन्द्रश्च सोम्यं मधु जुषन्तां पिबन्तु मदन्तु सकला विद्या व्यन्तु तथा यज ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सृष्टिपदार्थविद्यां सत्यां वाचं सुरक्षकं राजानं च प्राप्य पशूनां पयआदिभिः पुष्यन्ति ते सुरसान् सुसंस्कृतान्नादीन् सुपरीक्षितान् भोगान् युक्त्या भुक्त्वा रसान् पीत्वा धर्मार्थकाममोक्षार्थे प्रयतन्ते ते सदा सुखिनो भवन्ति ॥४२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक या जगातील पदार्थविद्या प्राप्त करून सत्यवचनाने रक्षणकर्त्या राजाचा आश्रय घेऊन पशूंचे दूध प्राशन करून पुष्ट होतात व संस्कारित केलेल अन्नपदार्थ खातात, तसेच रस प्राशन करून धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष यांसाठी प्रयत्न करतात, ते सदैव सुखी होतात.