वांछित मन्त्र चुनें

होता॑ यक्षदि॒डेडि॒तऽआ॒ जु॒ह्वा॑नः॒ सर॑स्वती॒मिन्द्रं बले॑न व॒र्धय॑न्नृष॒भेण॒ गवे॑न्द्रि॒यम॒श्विनेन्द्रा॑य भेष॒जं यवैः॑ क॒र्कन्धु॑भि॒र्मधु॑ ला॒जैर्न मास॑रं॒ पयः॒ सोमः॑ परि॒स्रुता॑ घृ॒तं मधु॒ व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑ ॥३२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। इ॒डा। ई॒डि॒तः। आ॒जुह्वा॑न॒ इत्या॒ऽजुह्वा॑नः। सर॑स्वतीम्। इन्द्र॑म्। बले॑न। व॒र्धय॑न्। ऋ॒ष॒भेण॑। गवा॑। इ॒न्द्रि॒यम्। अ॒श्विना॑। इन्द्रा॑य। भे॒ष॒जम्। यवैः॑। क॒र्कन्धु॑भि॒रिति॑ क॒र्कन्धु॑ऽभिः। मधु॑। ला॒जैः। न। मास॑रम्। पयः॑। सोमः॑। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। घृ॒तम्। मधु॑। व्यन्तु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥३२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:32


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (होतः) हवनकर्त्ता जन ! जैसे (इडा) स्तुति करने योग्य वाणी से (ईडितः) प्रशंसायुक्त (आजुह्वानः) सत्कार से आजुह्वान किया गया (होता) प्रशंसा करने योग्य मनुष्य (बलेन) बल से (सरस्वतीम्) वाणी और (इन्द्रम्) ऐश्वर्य को (ऋषभेण) चलने योग्य उत्तम (गवा) बैल से (इन्द्रियम्) धन तथा (अश्विना) आकाश और पृथिवी को (यवैः) यव आदि अन्नों से (इन्द्राय) ऐश्वर्य के लिये (भेषजम्) औषध को (वर्द्धयन्) बढ़ाता हुआ (कर्कन्धुभिः) बेर की क्रिया को धारण करनेवालों से (मधु) मीठे (लाजैः) प्रफुल्लित अन्नों के (न) समान (मासरम्) भात को (यक्षत्) सङ्गत करे, वैसे जो (परिस्रुता) सब ओर से प्राप्त हुए रस के साथ (सोमः) ओषधिसमूह (पयः) रस (घृतम्) घी (मधु) और सहत (व्यन्तु) प्राप्त होवें, उनके साथ वर्त्तमान तू (आज्यस्य) घी का (यज) होम कर ॥३२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुतोपमालङ्कार हैं। मनुष्य ब्रह्मचर्य्य से शरीर और आत्मा के बल को तथा विद्वानों की सेवा विद्या और पुरुषार्थ से ऐश्वर्य को प्राप्त हो पथ्य और औषध के सेवन से रोगों का विनाश कर नीरोगता को प्राप्त हों ॥३२ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(होता) प्रशंसितुं योग्यः (यक्षत्) यजेत् (इडा) प्रशंसितया वाचा (ईडितः) प्रशंसितः (आजुह्वानः) सत्कारेणाहूतः (सरस्वतीम्) वाचम् (इन्द्रम्) ऐश्वर्यम् (बलेन) (वर्द्धयन्) (ऋषभेण) मन्तुं योग्येन (गवा) (इन्द्रियम्) धनम् (अश्विना) (इन्द्राय) ऐश्वर्याय (भेषजम्) (यवैः) यवादिभिरन्नैः (कर्कन्धुभिः) ये कर्कं बदरक्रियां दधति तैः (मधु) (लाजैः) प्रस्फुलितैरन्नैः (न) इव (मासरम्) ओदनम् (पयः) रसः (सोमः) ओषधिगणः (परिस्रुता) सर्वतः प्राप्तेन रसेन (घृतम्) (मधु) (व्यन्तु) (आज्यस्य) (होतः) (यज) ॥३२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतर्य इडेडित आजुह्वानो होता बलेन सरस्वतीमिन्द्रमृषभेण गवेन्द्रियमश्विना यवैरिन्द्राय भेषजं वर्द्धयन् कर्कन्धुभिर्मधु लाजैर्न मासरं यक्षत्तथा यानि परिस्रुता सह सोमः पयो घृतं मधु व्यन्तु तैस्सह वर्त्तमानस्त्वमाज्यस्य यज ॥३२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोमलङ्कारौ। मनुष्या ब्रह्मचर्य्येण शरीरात्मबलं विद्वत्सेवया विद्यापुरुषार्थेनैश्वर्य्यं प्राप्य पथ्यौषधसेवनाभ्यां रोगान् हत्वारोग्यमाप्नुयुः ॥३२।
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी ब्रह्मचर्याने शरीर व आत्म्याचे बल वाढवावे. विद्वानांची सेवा करावी. विद्या व पुरुषार्थ यांच्याद्वारे ऐश्वर्य प्राप्त करून घ्यावे. पथ्य करून औषधांचे सेवन करावे व रोगांचा नाश करून निरोगी बनावे.