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होता॑ यक्षत्स॒मिधा॒ऽग्निमि॒डस्प॒दे᳕ऽश्विनेन्द्र॒ꣳ सर॑स्वतीम॒जो धू॒म्रो न गो॒धूमैः॒ कुव॑लैर्भेष॒जं मधु॒ शष्पै॒र्न तेज॑ऽइन्द्रि॒यं पयः॒ सोमः॑ परि॒स्रुता॑ घृ॒तं मधु॒ व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑ ॥२९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। स॒मिधेति॑ स॒म्ऽइधा॑। अ॒ग्निम्। इ॒डः। प॒दे। अ॒श्विना॑। इन्द्र॑म्। सर॑स्वतीम्। अ॒जः। धू॒म्रः। न। गो॒धूमैः॑। कुव॑लैः। भे॒ष॒जम्। मधु॑। शष्पैः॑। न। तेजः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। पयः॑। सोमः॑। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। घृ॒तम्। मधु॑। व्यन्तु॑। आज्यस्य॑। होतः॑। यज॑ ॥२९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:29


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) यज्ञ करने हारे जन ! जैसे (होता) देनेवाला (इडस्पदे) पृथिवी और अन्न के स्थान में (समिधा) इन्धनादि साधनों से (अग्निम्) अग्नि को (अश्विना) सूर्य और चन्द्रमा (इन्द्रम्) ऐश्वर्य वा जीव और (सरस्वतीम्) सुशिक्षायुक्त वाणी को (अजः) प्राप्त होने योग्य (धूम्रः) धुमैले मेढ़े के (न) समान कोई जीव (गोधूमैः) गेहूँ और (कुवलैः) जिन से बल नष्ट हो, उन बेरों से (भेषजम्) औषध को (यक्षत्) सङ्गत करे, वैसे (शष्पैः) हिंसाओं के (न) समान साधनों से जो (तेजः) प्रगल्भपन (मधु) मधुर जल (इन्द्रियम्) धन (पयः) दूध वा अन्न (परिस्रुता) सब ओर से प्राप्त हुए रस के साथ (सोमः) औषधियों का समूह (घृतम्) घृत (मधु) और सहत (व्यन्तु) प्राप्त हों, उनके साथ (आज्यस्य) घी का (यज) होम कर ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो लोग इस संसार में साधन और उपसाधनों से पृथिवी आदि की विद्या को जानते हैं, वे सब उत्तम पदार्थों को प्राप्त होते हैं ॥२९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(होता) दाता (यक्षत्) यजेत्संगच्छेत् (समिधा) इन्धनादिसाधनैः (अग्निम्) पावकम् (इडस्पदे) पृथिव्यन्नस्थाने (अश्विना) सूर्याचन्द्रमसौ (इन्द्रम्) ऐश्वर्य्यं जीवं वा (सरस्वतीम्) सुशिक्षितां वाचम् (अजः) प्राप्तव्यो मेषः (धूम्रः) धूम्रवर्णः (न) इव (गोधूमैः) (कुवलैः) कुत्सितं बलं यैस्तैर्बदरैः। अत्र कुशब्द इत्यस्माद् धातोरौणादिकः कलन् प्रत्ययः (भेषजम्) औषधम् (मधु) मधुरमुदकम् (शष्पैः) हिंसनैः (न) इव (तेजः) प्रागल्भ्यम् (इन्द्रियम्) धनम् (पयः) दुग्धमन्नं वा (सोमः) ओषधिगणः (परिस्रुता) परितः सर्वतः स्रुता प्राप्तेन रसेन (घृतम्) आज्यम् (मधु) क्षौद्रम् (व्यन्तु) प्राप्नुवन्तु (आज्यस्य) घृतम्। अत्र कर्मणि षष्ठी (होतः) (यज) ॥२९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतर्यथा होतेडस्पदे समिधाग्निमश्विनेन्द्रं सरस्वतीमजो धूम्रो न कश्चिज्जीवो गोधूमैः कुवलैर्भेषजं यक्षत्तथा शष्पैर्न यानि तेजो मध्विन्द्रियं पयः परिस्रुता स सोमो घृतं मधु व्यन्तु, तैः सह वर्त्तमानमाज्यस्य यज ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। येऽस्य संसारस्य मध्ये साधनोपसाधनैः पृथिव्यादिविद्यां जानन्ति, ते सर्व उत्तमान् पदार्थान् प्राप्नुवन्ति ॥२९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक या जगात साधनांनी व उपसाधनांनी पृथ्वीची विद्या जाणतात त्यंना सर्व उत्तम पदार्थ प्राप्त होतात.