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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (एकविंशे) इक्कीसवें व्यवहार में (स्तुताः) स्तुति किये हुए (ऋभवः) बुद्धिमान् (देवाः) दिव्यगुणयुक्त (शारदेन) शरद् (ऋतुना) ऋतु वा (वैराजेन) विराट्छन्द में प्रकाशमान अर्थ के साथ (श्रिया) शोभा और लक्ष्मी के साथ वर्त्ताव वर्त्तने हारे जन (इन्द्रे) जीवात्मा में (श्रियम्) लक्ष्मी और (हविः) देने-लेने योग्य (वयः) वाञ्छित सुख को (दधुः) धारण करें, उन का तुम लोग सेवन करो ॥२६ ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग अच्छे पथ्य करने हारे शरद् ऋतु में रोगरहित होते हैं, वे लक्ष्मी को प्राप्त होते हैं ॥२६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(शारदेन) शरदि भवेन (ऋतुना) (देवाः) (एकविंशे) एतत्संख्याके (ऋभवः) मेधाविनः (स्तुताः) (वैराजेन) विराजि भवेनार्थेन (श्रिया) शोभया लक्ष्म्या वा (श्रियम्) लक्ष्मीम् (हविः) दातव्यमादातव्यम् (इन्द्रे) जीवे (वयः) कमनीयं सुखम् (दधुः) दध्युः ॥२६ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! य एकविंशे स्तुता ऋभवो देवाः शारदेनर्तुना वैराजेन श्रिया सह वर्त्तमाना इन्द्रे श्रियं हविर्वयश्च दधुस्तान् यूयं सेवध्वम् ॥२६ ॥
भावार्थभाषाः - ये सुपथ्यकारिणो जनाः शरद्यरोगा भवन्ति, ते श्रियमाप्नुवन्ति ॥२६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक शरद ऋतूमध्ये पथ्य करून रोगरहित होतात त्यांना लक्ष्मी प्राप्त होते.