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व॒र्षाभि॑र्ऋ॒तुना॑दि॒त्या स्तोमे॑ सप्तद॒शे स्तु॒ताः। वै॒रू॒पेण॑ वि॒शौज॑सा ह॒विरिन्द्रे॒ वयो॑ दधुः ॥२५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व॒र्षाभिः॑। ऋ॒तुना॑। आ॒दि॒त्याः। स्तोमे॑। स॒प्त॒द॒श इति॑ सप्तऽद॒शे। स्तु॒ताः। वै॒रू॒पेण॑। वि॒शा। ओज॑सा। ह॒विः। इन्द्रे॑। वयः॑। द॒धुः॒ ॥२५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:25


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उत्तम ब्रह्मचर्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (वर्षाभिः) जिसमें मेघ वृष्टि करते हैं, उस वर्षा (ऋतुना) प्राप्त होने योग्य ऋतु (वैरूपेण) अनेक रूपों के होने से (ओजसा) जो बल और उस (विशा) प्रजा के साथ रहनेवाले (आदित्याः) बारह महीने वा उत्तम कल्प के विद्वान् (सप्तदशे) सत्रहवें (स्तोमे) स्तुति के व्यवहार में (स्तुताः) प्रशंसा किये हुए (इन्द्रे) जीवात्मा में (हविः) देने योग्य (वयः) काल के ज्ञान को (दधुः) धारण करते हैं, उन को तुम लोग जानकार उपकार करो ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य लोग विद्वानों के सङ्ग से काल की स्थूल-सूक्ष्म गति को जान के एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गमाते हैं, वे नानाविध ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥२५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोत्तमब्रह्मचर्यविषयमाह ॥

अन्वय:

(वर्षाभिः) वर्षन्ति मेघा यासु ताभिः (ऋतुना) (आदित्याः) द्वादश मासा उत्तमा विद्वांसो वा (स्तोमे) स्तुतिव्यवहारे (सप्तदशे) एतत्संख्याके (स्तुताः) प्रशंसिताः (वैरूपेण) विविधानां रूपाणां भावेन (विशा) प्रजया (ओजसा) बलेन (हविः) दातव्यम् (इन्द्रे) जीवे (वयः) कालविज्ञानम् (दधुः) दध्युः ॥२५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! ये वर्षाभिर्ऋतुना वैरूपेणौजसा विशा सह वर्त्तमाना आदित्याः सप्तदशे स्तोमे स्तुता इन्द्रे हविर्वयो दधुस्तान् यूयं विज्ञायोपकुरुत ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विद्वत्सङ्गेन कालस्य स्थूलसूक्ष्मगती विज्ञायैकक्षणमपि व्यर्थे न नयन्ति, ते विचित्रमैश्वर्यमाप्नुवन्ति ॥२५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्वानांच्या संगतीने काळाची स्थूल व सूक्ष्म गती जाणून एक क्षणही व्यर्थ घालवित नाहीत ती नाना प्रकारचे ऐश्वर्य प्राप्त करतात.