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ग्री॒ष्मेण॑ऽऋ॒तुना॑ दे॒वा रु॒द्राः प॒ञ्च॒द॒शे स्तु॒ताः। बृ॒ह॒ता यश॑सा॒ बल॑ꣳह॒विरिन्द्रे॒ वयो॑ दधुः ॥२४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ग्री॒ष्मेण॑। ऋ॒तुना॑। दे॒वाः। रुद्राः। प॒ञ्च॒द॒श इति॑ पञ्चऽद॒शे। स्तु॒ताः। बृ॒ह॒ता। यश॑सा। बल॑म्। ह॒विः। इन्द्रे॑। वयः॑। द॒धुः॒ ॥२४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:24


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मध्यम ब्रह्मचर्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (स्तुताः) प्रशंसा किये हुए (रुद्राः) दश प्राण ग्यारहवाँ जीवात्मा वा मध्यम कक्षा के (देवाः) दिव्यगुणयुक्त विद्वान् (पञ्चदशे) पन्द्रहवें व्यवहार में (ग्रीष्मेण) सब रसों के खेंचने और (ऋतुना) उष्णपन प्राप्त करनेहारे ग्रीष्म ऋतु वा (बृहता) बड़े (यशसा) यश से (इन्द्रे) जीवात्मा में (हविः) ग्रहण करने योग्य (बलम्) बल और (वयः) जीवन को (दधुः) धारण करें, उन को तुम लोग जानो ॥२४ ॥
भावार्थभाषाः - जो ४४ चवालीस वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्य से विद्वान् हुए अन्य मनुष्यों के शरीर और आत्मा के बल को बढ़ाते हैं, वे भाग्यवान् होते हैं ॥२४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मध्यमब्रह्मचर्यविषयमाह ॥

अन्वय:

(ग्रीष्मेण) सर्वरसग्रहीत्रा (ऋतुना) औष्ण्यं प्रापकेन (देवाः) दिव्यगुणाः (रुद्राः) दशप्राणा एकादश आत्मा मध्यमविद्वांसो वा (पञ्चदशे) (स्तुताः) प्रशस्ताः (बृहता) महता (यशसा) कीर्त्या (बलम्) (हविः) आदातव्यम् (इन्द्रे) जीवे (वयः) जीवनम् (दधुः) दध्युः ॥२४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! ये स्तुता रुद्रा देवाः पञ्चदशे ग्रीष्मेणर्त्तुना बृहता यशसेन्द्रे हविर्बलं वयश्च दधुस्तान् यूयं विजानीत ॥२४ ॥
भावार्थभाषाः - ये चतुश्चत्वारिंशद् वर्षयुक्तेन ब्रह्मचर्येण जातविद्वांसोऽन्येषां शरीरात्मबलमुन्नयन्ति, ते भाग्यशालिनो जायन्ते ॥२४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे चौरेचाळीस (४४) वर्षांपर्यंत ब्रह्मचर्य पालन करून विद्वान बनतात व इतर माणसांचे शरीर आणि आत्म्याचे बल वाढवितात ते भाग्यवान असतात.