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श॒मि॒ता नो॒ वन॒स्पतिः॑ सवि॒ता प्र॑सु॒वन् भग॑म्। क॒कुप् छन्द॑ऽइ॒हेन्द्रि॒यं व॒शा वे॒हद्वयो॑ दधुः ॥२१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श॒मि॒ता। नः॒। वन॒स्पतिः॑। स॒वि॒ता। प्र॒सु॒वन्निति॑ प्रऽसु॒वन्। भग॑म्। क॒कुप्। छन्दः॑। इ॒ह। इ॒न्द्रि॒यम्। व॒शा। वे॒हत्। वयः॑। द॒धुः॒ ॥२१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:21


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर प्रजाविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (शमिता) शान्ति देने हारा (वनस्पतिः) औषधियों का राजा वा वृक्षों का पालक (सविता) सूर्य (भगम्) धन को (प्रसुवन्) उत्पन्न करता हुआ (ककुप्) ककुप् (छन्दः) छन्द और (इन्द्रियम्) जीव के चिह्न को तथा (वशा) जिस के सन्तान नहीं हुआ और (वेहत्) जो गर्भ को गिराती है, वह (इह) इस जगत् में (नः) हमारे (वयः) प्राप्त होने योग्य वस्तु को (दधुः) धारण करे, उस को तुम लोग जान के उपकार करो ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - जिस मनुष्य से सर्वरोग की नाशक औषधियाँ और ढाँकनेवाले उत्तम वस्त्र सेवन किये जाते हैं, वह बहुत वर्षों तक जी सकता है ॥२१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रजाविषयमाह ॥

अन्वय:

(शमिता) शान्तिप्रदः (नः) अस्माकम् (वनस्पतिः) ओषधिराजो वृक्षाणां पालकश्च (सविता) सूर्यः (प्रसुवन्) उत्पादयन् (भगम्) धनम् (ककुप्) (छन्दः) (इह) संसारे (इन्द्रियम्) जीवलिङ्गम् (वशा) अप्रसूता (वेहत्) या प्रसवं विहन्ति सा (वयः) व्याप्तव्यम् (दधुः) ॥२१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यः शमिता वनस्पतिः सविता भगं प्रसुवन् ककुप् छन्द इन्द्रियं वशा वेहच्चेह नो वयो दधुस्तान् यूयं विज्ञायोपकुरुत ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - येन मनुष्येण सर्वरोगप्रणाशिका औषधय आवरकाण्युत्तमानि वस्त्राणि च सेव्यन्ते, स चिरंजीवी भवति ॥२१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सर्व रोगांचा नाश करणारे औषध घेतो व देह झाकला जावा म्हणून उत्तम वस्रे वापरतो, तो पुष्कळ वर्षे जगतो.