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ति॒स्रऽइडा॒ सर॑स्वती॒ भार॑ती म॒रुतो॒ विशः॑। वि॒राट्छन्द॑ऽइ॒हेन्द्रि॒यं धे॒नुर्गौर्न वयो॑ दधुः ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ति॒स्रः। इडा॑। सर॑स्वती। भार॑ती। म॒रुतः॑। विशः॑। वि॒राडिति॑ वि॒ऽराट्। छन्दः॑। इ॒ह। इ॒न्द्रि॒यम्। धे॒नुः। गौः। न। वयः॑। द॒धुः॒ ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों के विषय में अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (इह) इस जगत् में (इडा) पृथ्वी (सरस्वती) वाणी और (भारती) धारणवाली बुद्धि ये (तिस्रः) तीन (मरुतः) पवनगण (विशः) मनुष्य आदि प्रजा (विराट्) तथा अनेक प्रकार से देदीप्यमान (छन्दः) बल (इन्द्रियम्) धन को और (धेनुः) पान कराने हारी (गौः) गाय के (न) समान (वयः) प्राप्त होने योग्य वस्तु को (दधुः) धारण करें, वैसे सब मनुष्य लोग इस को धारण करके वर्त्ताव करें ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे विद्वान् लोग सुशिक्षित वाणी, विद्या, प्राण और पशुओं से ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं, वैसे अन्य सब को प्राप्त होना चाहिए ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

(तिस्रः) त्रित्वसंख्यावत्यः (इडा) भूमिः (सरस्वती) वाणी (भारती) धारणवती प्रज्ञा (मरुतः) वायवः (विशः) मनुष्याद्याः प्रजाः (विराट्) यद्विविधं राजते तत् (छन्दः) बलम् (इह) अस्मिन् संसारे (इन्द्रियम्) धनम् (धेनुः) या धापयति सा (गौः) (न) इव (वयः) प्राप्तव्यं वस्तु (दधुः) दध्युः ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यथेहेडा सरस्वती भारती च तिस्रो मरुतो विशो विराट्छन्द इन्द्रियं धेनुर्गौर्न वयश्च दधुस्तथा सर्वे मनुष्या एतद्धृत्वा वर्तेरन् ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा विद्वांसः सुशिक्षितया वाचा विद्यया प्राणैः पशुभिश्चैश्वर्य्यं लभन्ते, तथाऽन्यैर्लब्धव्यम् ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्वान लोक जसे सुशिक्षित वाणी, विद्या, प्राण व पशू यांच्यापासून ऐश्वर्य प्राप्त करतात तसे इतरांनीही प्राप्त करावे.