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दैव्या॒ होता॑रा भि॒षजेन्द्रे॑ण स॒युजा॑ यु॒जा। जग॑ती॒ छन्द॑ऽइन्द्रि॒यम॑न॒ड्वान् गौर्वयो॑ दधुः ॥१८ ॥

पद पाठ

दैव्या॑। होता॑रा। भि॒षजा॑। इन्द्रे॑ण स॒युजेति॑ स॒ऽयुजा॑। यु॒जा। जग॑ती। छन्दः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। अ॒न॒ड्वान्। गौः। वयः॑। द॒धुः॒ ॥१८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:18


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मन्त्र में वैद्य के तुल्य अन्यों को आचरण करना चाहिए, इस विषय को कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य लोगो ! जैसे (इन्द्रेण) ऐश्वर्य से (सयुजा) ओषधि आदि का तुल्य योग करनेहारे (युजा) सावधान चित्त हुए (दैव्या) विद्वानों में निपुण (होतारा) विद्यादि के देनेवाले (भिषजा) उत्तम दो वैद्य लोग (अनड्वान्) बैल (गौः) गाय और (जगती छन्दः) जगती छन्द (वयः) सुन्दर (इन्द्रियम्) धन को (दधुः) धारण करें, वैसे इस को तुम लोग धारण करो ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे वैद्यों से अपने और दूसरों के रोग मिटाके अपने आप और दूसरे ऐश्वर्यवान् किये जाते हैं, वैसे सब मनुष्यों को वर्त्तना चाहिए ॥१८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ भिषग्वदितरैराचरितव्यमित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(दैव्या) देवेषु विद्वत्सु कुशलौ (होतारा) दातारौ (भिषजा) सद्वैद्यौ (इन्द्रेण) ऐश्वर्य्येण (सयुजा) यौ समानं युङ्क्तस्तौ (युजा) समाहितौ (जगती) (छन्दः) (इन्द्रियम्) धनम् (अनड्वान्) वृषभः (गौः) (वयः) कमनीयम् (दधुः) दध्युः ॥१८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथेन्द्रेण सयुजा युजा दैव्या होतारा भिषजाऽनड्वान् गौर्जगती छन्दश्च वय इन्द्रियं दधुस्तथैतद्भवन्तो दधीरन् ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा वैद्यैः स्वेषां परेषां च रोगान्निवार्य्य स्वेऽन्ये चैश्वर्य्यवन्तः क्रियन्ते तथा सर्वैर्मनुष्यैर्वर्तितव्यम् ॥१८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा वैद्य स्वतःचे व इतरांचे रोग नाहीसे करून स्वतःला व इतरांना ऐश्वर्यवान करतो तसे सर्व माणसांनी वागावे.