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तनू॒नपा॒च्छुचि॑व्रतस्तनू॒पाश्च॒ सर॑स्वती। उ॒ष्णिहा॒ छन्द॑ऽइन्द्रि॒यं दि॑त्य॒वाड् गौर्वयो॑ दधुः ॥१३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तनू॒नपा॒दिति॒ तनू॒ऽनपा॑त्। शुचि॑ऽव्रतः। त॒नू॒पा इति॑ तनू॒ऽपाः। च॒। सर॑स्वती। उ॒ष्णिहा॑। छन्दः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। दि॒त्य॒वाडिति॑ दित्य॒ऽवाट्। गौः। वयः॑। द॒धुः॒ ॥१३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:13


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (शुचिव्रतः) पवित्र धर्म के आचरण करने (तनूनपात्) शरीर को पड़ने न देने (तनूपाः) किन्तु शरीर की रक्षा करने हारा (च) और (सरस्वती) वाणी तथा (उष्णिहा) उष्णिह (छन्दः) छन्द (इन्द्रियम्) जीव के चिह्न को धारण करता है वा जैसे (दित्यवाट्) खण्डनीय पदार्थों के लिये हित प्राप्त कराने और (गौः) स्तुति करने हारा जन (वयः) इच्छा को बढ़ाता है, वैसे इन सब को विद्वान् लोग (दधुः) धारण करें ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग पवित्र आचरणवाले हैं और जिनकी वाणी विद्याओं में सुशिक्षा पाई हुई है, वे पूर्ण जीवन के धारण करने को योग्य हैं ॥१३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(तनूनपात्) यस्तनूं न पातयति सः (शुचिव्रतः) पवित्रधर्माचरणशीलः (तनूपाः) यस्तनूः पाति (च) (सरस्वती) वाणी (उष्णिहा) (छन्दः) (इन्द्रियम्) इन्द्रस्य जीवस्य लिङ्गम् (दित्यवाट्) दितये हितं वहति (गौः) स्तोता (वयः) कामनाम् (दधुः) ॥१३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यथा शुचिव्रतस्तनूनपात्तनूपाः सरस्वती चोष्णिहा छन्द इन्द्रियं दधाति, यथा च दित्यवाड् गौर्वयो वर्धयति, तथैतस्सर्वं विद्वांसो दधुः ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये पवित्राचरणा येषां वाणी विद्यासुशिक्षायुक्तास्ति, ते पूर्णं जीवनं धातुर्महन्ति ॥१३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक पवित्र आचरण करणारे असतात व ज्यांची वाणी विद्येने संस्कारित झालेली असते ते पूर्णपणे व्यवस्थित जीवन जगतात.