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इ॒मं मे॑ वरुण श्रु॒धी हव॑म॒द्या च॑ मृडय। त्वाम॑व॒स्युरा च॑के ॥१ ॥

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पद पाठ

इम॒म्। मे॒। व॒रु॒ण॒। श्रु॒धि। हव॑म्। अ॒द्य। च॒। मृ॒ड॒य॒। त्वाम्। अ॒व॒स्युः। आ। च॒के॒ ॥१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:1


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब इक्कीसवें अध्याय का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के विषय में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वरुण) उत्तम विद्यावान् जन ! जो (अवस्युः) अपनी रक्षा की इच्छा करनेहारा मैं (इमम्) इस (त्वाम्) तुझ को (आ, चके) चाहता हूँ वह तू (मे) मेरी (हवम्) स्तुति को (श्रुधि) सुन (च) और (अद्य) आज मुझ को (मृडय) सुखी कर ॥१ ॥
भावार्थभाषाः - सब विद्या की इच्छावाले पुरुषों को चाहिए कि अनुक्रम से उपदेश करनेवाले बड़े विद्वान् की इच्छा करें, वह विद्यार्थियों के स्वाध्याय को सुन और उत्तम परीक्षा करके सब को आनन्दित करे ॥१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

(इमम्) (मे) मम (वरुण) उत्तमविद्वन् (श्रुधि) शृणु। अत्र संहितायाम् [अ०६.३.११४] इति दीर्घः (हवम्) स्तवनम् (अद्य) अस्मिन्नहनि। अत्र निपातस्य च [अ०६.३.१३६] इति दीर्घः (च) (मृडय) (त्वाम्) (अवस्युः) आत्मनोऽव इच्छुः (आ) (चके) कामये। आचक इति कान्तिकर्मा ॥ (निघं०२.६) ॥१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वरुण! योऽवस्युरहमिमं त्वामाचके स त्वं मे हवं श्रुधि। अद्य मां मृडय च ॥१ ॥
भावार्थभाषाः - सर्वैर्विद्याकामैरनूचानो विद्वान् कमनीयः स विद्यार्थिनां स्वाध्यायं श्रुत्वा सुपरीक्ष्य सर्वानानन्दयेत् ॥१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्यार्थ्यांनी विद्येचा उपदेश करणाऱ्या श्रेष्ठ विद्वानांकडून विद्या प्राप्त करण्याची इच्छा बाळगावी. विद्वानांनी विद्यार्थ्यांचा स्वाध्याय ऐकावा व उत्तम परीक्षा करून सर्वांना आनंदित करावे.