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नाभि॑र्मे चि॒त्तं वि॒ज्ञानं॑ पा॒युर्मेऽप॑चितिर्भ॒सत्। आ॒न॒न्द॒न॒न्दावा॒ण्डौ मे॒ भगः॒ सौभा॑ग्यं॒ पसः॑। जङ्घा॑भ्यां प॒द्भ्यां धर्मो॑ऽस्मि वि॒शि राजा॒ प्रति॑ष्ठितः ॥९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नाभिः॑। मे॒। चि॒त्तम्। वि॒ज्ञान॒मिति॑ वि॒ऽज्ञान॑म्। पा॒युः। मे॒। अप॑चिति॒रित्यप॑ऽचितिः। भ॒सत्। आ॒न॒न्द॒न॒न्दावित्या॑नन्दऽन॒न्दौ। आ॒ण्डौ। मे॒। भगः॑। सौभा॑ग्यम्। पसः॑। जङ्घा॑भ्याम्। प॒द्भ्यामिति॑ प॒त्ऽभ्याम्। धर्मः॑। अ॒स्मि॒। वि॒शि। राजा॑। प्रति॑ष्ठितः। प्रति॑स्थित॒ इति॒ प्रति॑ऽस्थितः ॥९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:9


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (मे) मेरी (चित्तम्) स्मरण करनेहारी वृत्ति (नाभिः) मध्यप्रदेश (विज्ञानम्) विशेष वा अनेक ज्ञान (पायुः) मूलेन्द्रिय (मे) मेरी (अपचितिः) प्रजाजनक (भसत्) योनि (आण्डौ) अण्डे के आकार के वृषणावयव (आनन्दनन्दौ) संभोग के सुख से आनन्दकारक (मे) मेरा (भगः) ऐश्वर्य्य (पसः) लिङ्ग और (सौभाग्यम्) पुत्र-पौत्रादि युक्त होवे, इसी प्रकार मैं (जङ्घाभ्याम्) जङ्घा और (पद्भ्याम्) पगों के साथ (विशि) प्रजा में (प्रतिष्ठितः) प्रतिष्ठा को प्राप्त (धर्मः) पक्षपातरहित न्यायधर्म के समान (राजा) राजा (अस्मि) हूँ, जिससे तुम लोग मेरे अनुकूल रहो ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - जो सब अङ्गों से शुभ कर्म करता है, सो धर्मात्मा होकर प्रजा में सत्कार के योग्य उत्तम प्रतिष्ठित राजा होवे ॥९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(नाभिः) शरीरमध्यदेशः (मे) मम (चित्तम्) (विज्ञानम्) सम्यग् ज्ञानं विविधज्ञानं वा (पायुः) गुदेन्द्रियम् (मे) (अपचितिः) प्रजाजनकम् (भसत्) भगेन्द्रियम् (आनन्दनन्दौ) आनन्देन संभोगजनितसुखेन नन्दतस्तौ (आण्डौ) अण्डाकारौ वृषणौ (मे) (भगः) ऐश्वर्यम् (सौभाग्यम्) उत्तमैश्वर्यस्य भावः (पसः) लिङ्गम् (जङ्घाभ्याम्) (पद्भ्याम्) (धर्मः) पक्षपातरहितो न्यायो धर्म इव (अस्मि) (विशि) प्रजायाम् (राजा) प्रकाशमानः (प्रतिष्ठितः) प्राप्तप्रतिष्ठः ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! मे चित्तं नाभिर्विज्ञानं पायुर्मेऽपचितिर्भसदाण्डावानन्दनन्दौ मे भगः पसः सौभाग्यं सौभाग्ययुक्तं स्यादेवमहं जङ्घाभ्यां पद्भ्यां सह विशि प्रतिष्ठितो धर्मो राजाऽस्मि, यस्माद्यूयं मदनुकूला भवत ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - यस्सर्वैरङ्गैः शुभं कर्माऽऽचरेत्, स धर्मात्मा सन् प्रजायां सुप्रतिष्ठितो राजा स्यात् ॥९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो सर्वांगाने शुभ कर्म करतो तो धर्मात्मा बनून प्रजेमध्ये सत्कार करण्यायोग्य उत्तम व प्रतिष्ठित राजा बनतो.